हम क्या चाहते हैं? अपने बच्चें भारतीय रहें या विदेशी संस्कृति में पलें?
यह समझ में आता हैं कि जगह के कमी के कारण आजकल हॉटेल में जन्मदिन मनाने की प्रथा आरम्भ हो गयी है। परन्तु जो आयोजक हैं वे इस बात का पूरी रीति से ध्यान रक्खें कि जन्मदिन भारतीय विधि से मनाया जाय।
अग्निहोत्र जरूर करें। (अगर हॉटेल में अनुमति नहीं मिलती तो घर पर करे।)
खाना भारतीय हो और आयुर्वेद के अनुसार हितकारी और ऋतु-अनुसार हो।
केक काटने की प्रथा बन्द हो। अंग्रेजी लोग केक इसलिये बनाते हैं क्योंकि वह उनकी मजबूरी हैं - वहाँ के वातावरण के कारण। हमारी तो कोई मजबूरी नहीं हैं। हम शुद्ध घी की मिठाई बाँट सकते है।
केक पर मोमबत्ती पहले जलाके और बाद में बुझाने की प्रथा कितनी गलत है?
१. हमारी संस्कृति है - "तमसो मा ज्योतिर्गमय" - शतपथ ब्राह्मण [१४।३।१।३०]॥
अर्थ - हे परमगुरु परमात्मन्! आप हमको अविद्यान्धकार को छुडाके विद्यारूप सूर्य को प्राप्त कीजिये।
और हम क्या कर रहें है - क्या रोशनी को बुझा कर अन्धकार करना उचित है?
२. जब कोई झूठा अन्न खिलावे तो सही है या गलत? जब आप उस केक पर रक्खी मोमबत्ती को बुखाते है टो हमारे मुख में से थूक निकलकर केक पर गिरती है।
कृपया विचार करे। क्योंकि हम मनुष्य हैं। जो विचारपूर्वक निर्णय लेता है, जो मननशील है वही मनुष्य है।
और आप भारतीय बनना और भारतीय ढंग से जीना चाहें तो ठीक है, अन्यथा जैसे आप चाहें वैसे जियें , सब स्वतंत्र हैं.
धन्यवाद ! शेष कुशल ।
आपका शुभ चिन्तक,
स्वामी विवेकानन्द.
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