Saturday, June 8, 2019

Jivan

Morbi radio Discussion on Youth


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Monday, April 29, 2019

At Swaminarayan temple Maninagar

Had great time to be with Muktajivan Swaminarayan temple Maninagar ( Pujya Purushottam Prakash Swami)

Wednesday, April 24, 2019

संघ और गांधीजी



संघ और गांधीजी

चुनाव का शंख बज चुका है. सभी दल अपनी-अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुसार चुनावी भाषण भी दे रहे हैं. एक दल के नेता ने कहा कि इस चुनाव में आपको गांधी या गोडसे के बीच चुनाव करना है. एक बात मैंने देखी है. जो गांधी जी के असली अनुयायी हैं, वे अपने आचरण पर अधिक ध्यान देते हैं, वे कभी गोडसे का नाम तक नहीं लेते. संघ में भी गांधी जी की चर्चा तो अनेक बार होती देखी है, पर गोडसे के नाम की चर्चा मैंने कभी नहीं सुनी है. परंतु अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए, ऐसे-ऐसे लोग गोडसे का नाम बार बार लेते हैं,जिनका आचरण और उनकी नीतियों का गांधी जी के विचारों से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं दिखता. वे तो सरासर असत्य और हिंसा का आश्रय लेने वाले और अपने स्वार्थ के लिए गांधी जी का उपयोग करने वाले ही होते हैं.

एक दैनिक के सम्पादक ने, जो संघ के स्वयंसेवक भी हैं, कहा कि एक गांधीवादी विचारक के लेख हमारे दैनिक में प्रकाशित हो रहे हैं. उस सम्पादक ने यह भी कहा कि उन गांधीवादी विचारक ने लेख लिखने की बात करते समय यह कहा कि संघ के और गांधीजी के संबंध कैसे थे, यह मैं जानता हूं फिर भी मैं आपको अनजान कुछ पहलुओं के बारे में लिखूंगा. यह सुन कर मैंने प्रश्न किया कि संघ और गांधीजी के संबंध कैसे थे, यह वे विचारक सही में जानते हैं? लोग बिना जाने, अध्ययन किए अपनी धारणाएं बना लेते हैं. संघ के बारे में तो अनेक विद्वान, स्कॉलर कहलाने वाले लोग भी पूरा अध्ययन करने का कष्ट किए बिना या, सिलेक्टिव अध्ययन के आधार पर या एक विशिष्ट दृष्टिकोण से लिखे साहित्य के आधार पर ही अपने 'विद्वत्तापूर्ण' (?) विचार व्यक्त करते हैं. किन्तु वास्तविकता यह है कि इन विचारों का 'सत्य' से कोई लेना-देना नहीं होता है.

महात्मा गांधी जी के कुछ मतों से तीव्र असहमति होते हुए भी संघ से संबंध कैसे थे, इस पर उपलब्ध जानकारी पर नजर डालनी चाहिए. भारत की आजादी के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष में जनाधार को व्यापक बनाने के शुद्ध उद्देश्य से मुसलमानों के कट्टर और जिहादी मानसिकता वाले हिस्से के सामने उनकी शरणागति से सहमत न होते हुए भी, आजादी के आंदोलन में सर्व सामान्य लोगों को सहभागी होने के लिए उन्होंने चरख़ा जैसा सहज उपलब्ध अमोघ साधन और सत्याग्रह जैसा सहज स्वीकार्य तरीका दिया, वह उनकी महानता है. ग्राम स्वराज्य, स्वदेशी, गौरक्षा, अस्पृश्यता निर्मूलन आदि उनके आग्रह के विषयों से भारत के मूलभूत हिन्दू चिंतन से उनका लगाव और आग्रह के महत्व को कोई नकार नहीं सकता. उनका स्वयं का मूल्याधारित जीवन अनेक युवक-युवतियों को आजीवन व्रतधारी बनकर समाज की सेवा में लगने की प्रेरणा देने वाला था.

सन् 1921 के असहयोग आंदोलन और 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन – इन दोनों सत्याग्रहों में डॉक्टर हेडगेवार सहभागी हुए थे. इस कारण उन्हें 19 अगस्त 1921 से 12 जुलाई 1922 तक और 21 जुलाई,1930 से 14 फ़रवरी, 1931 तक दो बार सश्रम कारावास की सजा भी हुई.

महात्मा गांधी जी को 18 मार्च, 1922 को छह वर्ष की सजा हो गयी. तब से उनकी मुक्ति तक प्रत्येक महीने की 18 तारीख़ 'गांधी दिन' के रूप में मनाई जाती थी. सन् 1922 के अक्तूबर मास में 'गांधी दिन' के अवसर पर दिए गए भाषण में डॉक्टर हेडगेवार जी ने कहा "आज का दिन अत्यंत पवित्र है. महात्मा जी जैसे पुण्यश्लोक पुरुष के जीवन में व्याप्त सद्गुणों के श्रवण एवं चिंतन का यह दिन है. उनके अनुयायी कहलाने में गौरव अनुभव करने वालों के सिर पर तो उनके इन गुणों का अनुकरण करने की ज़िम्मेदारी विशेषकर है." 1934 में वर्धा में श्री जमनालाल बजाज के यहां जब गांधी जी का निवास था, तब पास ही संघ का शीत शिविर चल रहा था. उत्सुकतावश गांधी जी वहां गए, अधिकारियों ने उनका स्वागत किया और स्वयंसेवकों के साथ उनका वार्तालाप भी हुआ. वार्तालाप के दौरान जब उन्हें पता चला कि शिविर में अनुसूचित जाति से भी स्वयंसेवक हैं, और उनसे किसी भी प्रकार का भेदभाव किए बिना सब भाईचारे के साथ स्नेहपूर्वक एक साथ रहते हैं, सारे कार्यक्रम साथ करते हैं, तब उन्होंने बहुत प्रसन्नता व्यक्त की.

स्वतंत्रता के पश्चात् जब गांधी जी का निवास दिल्ली में भंगी कालोनी में था, तब सामने मैदान में संघ की प्रभात शाखा चलती थी. सितम्बर में गांधी जी ने प्रमुख स्वयंसेवकों से बात करने की इच्छा व्यक्त की. उन्हें गांधी जी ने सम्बोधित किया "बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था. उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे. स्वर्गीय श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गए थे और मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ था. तब से संघ काफी बढ़ गया है. मैं तो हमेशा से यह मानता हूं कि जो भी संस्था सेवा और आत्म-त्याग के आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है. लेकिन सच्चे रूप में उपयोगी होने के लिए त्यागभाव के साथ ध्येय की पवित्रता और सच्चे ज्ञान का संयोजन आवश्यक है. ऐसा त्याग, जिसमें इन दो चीज़ों का अभाव हो, समाज के लिए अनर्थकारी सिद्ध हुआ है." यह सम्बोधन 'गांधी समग्र वांग्मय' के खंड 89 में 215-217 पृष्ठ पर प्रकाशित है.

30 जनवरी 1948 को सरसंघचालक श्री गुरुजी मद्रास में एक कार्यक्रम में थे, जब उन्हें गांधी जी की मृत्यु का समाचार मिला. उन्होंने तुरंत ही प्रधानमंत्री पंडित नेहरु, गृहमंत्री सरदार पटेल और गांधी जी के सुपुत्र देवदास गांधी को टेलीग्राम द्वारा अपनी शोक संवेदना भेजी. उसमें श्री गुरुजी ने लिखा –

"प्राण घातक क्रूर हमले के फलस्वरूप एक महान विभूति की दुःखद हत्या का समाचार सुनकर मुझे बड़ा आघात लगा. वर्तमान कठिन परिस्थिति में इससे देश की अपरिमित हानि हुई है. अतुलनीय संगठक के तिरोधान से जो रिक्तता पैदा हुई है, उसे पूर्ण करने और जो गुरुतर भार कंधों पर आ पड़ा है, उसे पूर्ण करने का सामर्थ्य भगवान हमें प्रदान करें."

गांधी जी के प्रति सम्मान रूप शोक व्यक्त करने के लिए 13 दिन तक संघ का दैनिक कार्य स्थगित करने की सूचना उन्होंने देशभर के स्वयंसेवकों को दी. दूसरे ही दिन 31 जनवरी 1948 को श्री गुरुजी ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को एक विस्तृत पत्र लिखा, उसमें वे लिखते हैं – " कल चेन्नई में वह भयंकर वार्ता सुनी कि किसी अविचारी भ्रष्ट-हृदय व्यक्ति ने पूज्य महात्मा जी पर गोली चलाकर उस महापुरुष के आकस्मिक असामयिक निधन का नीरघृण कृत्य किया. यह निंदा कृत्य संसार के सम्मुख अपने समाज पर कलंक लगाने वाला हुआ है."

ये सारी जानकारी Justice on Trial नामक पुस्तक में और श्री गुरुजी समग्र में उपलब्ध है.

06 अक्तूबर, 1969 में महात्मा गांधी जी की जन्मशताब्दी के समय महाराष्ट्र के सांगली में गांधी जी की प्रतिमा का श्री गुरुजी द्वारा अनावरण किया गया. उस समय श्री गुरुजी ने कहा – "आज एक महत्वपूर्ण व पवित्र अवसर पर हम एकत्र हुए हैं. सौ वर्ष पूर्व इसी दिन सौराष्ट्र में एक बालक का जन्म हुआ था. उस दिन अनेक बालकों का जन्म हुआ होगा, पर हम उनकी जन्म-शताब्दी नहीं मनाते. महात्मा गांधी जी का जन्म सामान्य व्यक्ति के समान हुआ, पर वे अपने कर्तव्य और अंतःकरण के प्रेम से परमश्रेष्ठ पुरुष की कोटि तक पहुंचे. उनका जीवन अपने सम्मुख रखकर, अपने जीवन को हम उसी प्रकार ढालें. उनके जीवन का जितना अधिकाधिक अनुकरण हम कर सकते हैं, उतना करें.

…..लोकमान्य तिलक के पश्चात् महात्मा गांधी ने अपने हाथों में स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्र संभाले और इस दिशा में बहुत प्रयास किए. शिक्षित-अशिक्षित स्त्री-पुरुषों में यह प्रेरणा निर्माण किया कि अंग्रेज़ों का राज्य हटाना चाहिए, देश को स्वतंत्र करना चाहिए और स्व के तंत्र से चलने के लिए जो कुछ मूल्य देना होगा, वह हम देंगे. महात्मा गांधी ने मिट्टी से सोना बनाया. साधारण लोगों में असाधारणत्व निर्माण किया. इस सारे वातावरण से ही अंग्रेज़ों को हटना पड़ा.

…..वे कहा करते थे – "मैं कट्टर हिन्दू हूं, इसलिए केवल मानवों पर ही नहीं, सम्पूर्ण जीवमात्र पर प्रेम करता हूं. उनके जीवन व राजनीति में सत्य व अहिंसा को जो प्रधानता मिली, वह कट्टर हिंदुत्व के कारण ही मिली. ……जिस हिन्दू-धर्म के बारे में हम इतना बोलते हैं, उस धर्म के भावितव्य पर उन्होंने 'फ़्यूचर ऑफ़ हिंदुइज्म' शीर्षक के अंतर्गत अपने विचार व्यक्त किए है. उन्होंने लिखा है – "हिन्दू-धर्म यानि न रुकने वाला, आग्रह के साथ बढ़ने वाला, सत्य की खोज का मार्ग है. आज यह धर्म थका हुआ-सा, आगे जाने की प्रेरणा देने में सहायक प्रतीत होता अनुभव में नहीं आता. इसका कारण है कि हम थक गए हैं, पर धर्म नहीं थका. जिस क्षण हमारी यह थकावट दूर होगी, उस क्षण हिन्दू-धर्म का भारी विस्फोट होगा जो भूतकाल में कभी नहीं हुआ, इतने बड़े परिमाण में हिन्दू-धर्म अपने प्रभाव और प्रकाश से दुनिया में चमक उठेगा."

महात्मा जी की यह भविष्यवाणी पूरी करने की ज़िम्मेदारी हमारी है.

…… देश को राजकीय स्वतंत्रता चाहिए, आर्थिक स्वतंत्रता चाहिए. उसी भांति इस तरह की धार्मिक स्वतंत्रता चाहिए कि कोई किसी का अपमान न कर सके, भिन्न-भिन्न पंथ के, धर्म के लोग साथ-साथ रह सकें. विदेशी विचारों की दासता से अपनी मुक्ति होनी चाहिए. गांधी जी की यही सीख थी. मैं गांधी जी से अनेक बार मिल चुका हूं. उनसे बहुत चर्चा भी की है. उन्होंने जो विचार व्यक्त किए, उन्हीं के अध्ययन से मैं यह कह रहा हूं. इसीलिए अंतःकरण की अनुभूति से मुझे महात्मा जी के प्रति नितांत आदर है."

गुरूजी कहते हैं, "महात्मा जी से मेरी अंतिम भेंट सन् 1947 में हुई थी. उस समय देश को स्वाधीनता मिलने से शासन-सूत्र संभालने के कारण नेतागण खुशी में थे. उसी समय दिल्ली में दंगा हो गया. मैं उस समय शांति प्रस्थापना करने का काम कर रहा था. गृहमंत्री सरदार पटेल भी प्रयत्न कर रहे थे और उस कार्य में उन्हें सफलता भी मिली. ऐसे वातावरण में मेरी महात्मा गांधी जी से भेंट हुई थी.

महात्मा जी ने मुझसे कहा – "देखो यह क्या हो रहा है?"

मैंने कहा – "यह अपना दुर्भाग्य है. अंग्रेज कहा करते थे कि हमारे जाने पर तुम लोग एक दूसरे का गला काटोगे. आज प्रत्यक्ष में वही हो रहा है. दुनिया में हमारी अप्रतिष्ठा हो रही है. इसे रोकना चाहिए."

गांधी जी ने उस दिन अपनी प्रार्थना सभा में मेरे नाम का उल्लेख गौरवपूर्ण शब्दों में कर, मेरे विचार लोगों को बताए और देश की हो रही अप्रतिष्ठा रोकने की प्रार्थना की. उस महात्मा के मुख से मेरा गौरवपूर्ण उल्लेख हुआ, यह मेरा सौभाग्य था. इन सारे सम्बन्धों से ही मैं कहता हूं कि हमें उनका अनुकरण करना चाहिए."

मैं जब वडोदरा में प्रचारक था, तब (1987-90) सह सरकार्यवह श्री यादवराव जोशी का वडोदरा में प्रकट व्याख्यान था. उसमें श्री यादवराव जी ने महात्मा गांधी जी का बहुत सम्मान के साथ उल्लेख किया. व्याख्यान के पश्चात् कार्यालय में एक कार्यकर्ता ने उनसे पूछा कि आज आपने महात्मा गांधी जी का सम्मान पूर्वक जो उल्लेख किया, वह क्या मन से किया था? इस पर यादव राव जी ने कहा कि मन में ना होते हुए भी केवल बोलने के लिए मैं कोई राजकीय नेता नहीं हूं. जो कहता हूं मन से ही कहता हूं. फिर उन्हों ने समझाया कि जब किसी व्यक्ति का हम आदर – सम्मान करते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि उनके सभी विचारों से हम सहमत होते हैं. एक विशिष्ट प्रभावी गुण के लिए हम उन्हें याद करते हैं, आदर्श मानते हैं. जैसे पितामह भीष्म को हम उनकी कठोर प्रतिज्ञा की दृढ़ता के लिए अवश्य स्मरण करते हैं, परंतु राजसभा में द्रौपदी के वस्त्रहरण के समय वे सारा अन्याय मौन देखते रहे, इसका समर्थन हम नहीं कर सकते हैं. इसी तरह कट्टर और जिहादी मुस्लिम नेतृत्व के संबंध में गांधी जी के व्यवहार के बारे में घोर असहमति होने के बावजूद, स्वतंत्रता आंदोलन में जनसामान्य को सहभागी होने के लिए उनके द्वारा दिया गया अवसर, स्वतंत्रता के लिए सामान्य लोगों में उनके द्वारा प्रज्ज्वलित की गई ज्वाला, भारतीय चिंतन पर आधारित उनके अनेक आग्रह के विषय, सत्याग्रह के माध्यम से व्यक्त किया जन आक्रोश – यह उनका योगदान निश्चित ही सराहनीय और प्रेरणादायी है.

इन सारे तथ्यों को ध्यान में लिए बिना संघ और गांधी जी के संबंध पर टिप्पणी करना असत्य और अनुचित ही कहा जा सकता है.

ग्राम विकास, सेंद्रिय कृषि, गौसंवर्धन, सामाजिक समरसता, मातृभाषा में शिक्षा और स्वदेशी अर्थ व्यवस्था एवं जीवन शैली ऐसे महात्मा गांधी जी के प्रिय एवं आग्रह के क्षेत्र में संघ स्वयंसेवक पूर्ण मनोयोग से सक्रिय हैं. यह वर्ष महात्मा गांधी जी की 150 वी जयंती है. उनकी पावन स्मृति को विनम्र आदरांजलि.

डॉ. मनमोहन वैद्य

सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ


Sunday, April 21, 2019

Tuesday, April 16, 2019

समाज , सामाजिक समरसता और शिक्षण




" समाज , सामाजिक समरसता और शिक्षण"

डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर के नाम पे कहीं डीसकोर्सीस होते हैं आज ही है अच्छा है कि उनके जन्मदिन पर उनके जीवन का जो लक्ष्य था वहीं भी सही यानी की सामाजिक समरसता पसंद किया गया है।  

डॉक्टर बाबासाहब को लोग कहीं अच्छे विषय से जुड़ते हैं कभी कभी जो उनके जीवन में कभी सोचा ही नहीं था

जैसे ही लोग जोड़ते रहते हैं। उदा.

-डॉक्टर बाबासाहब और सान्यवाद

 -डॉक्टर बाबासाहब और मूल निवासी 

-डॉक्टर बाबासाहब एंटी हिन्दू 

-और डॉक्टर बाबासाहब मार्कस 

         उदाहरण के तरीक़े देखा जाए तो अभी अभी जिसका नाम से लाइम लाइट मे आया है ऐसे नक्सल एक्टिविस्ट डॉक्टर आनंद टेल टुम्बडे वो कहते थे कि बाबासाहेब का  महाड -चवदार तालाब का संघर्ष , लालाराम मंदिर के प्रवेश का संघर्ष अधूरा रहा , छोड़ना पड़ा तो अगर मार्क्स के तरीक़े से काम करते तो सफल होते अम्बेडकर विचार को आगे ले जाना है क्लास और कास्स्ट का मार्कस  के रास्ते पे जाना चाहिए


        डॉक्टर बाबासाहब के जीवन का ध्येय सामाजिक समरसता का था। उनकी सोच थी समाज के अंतिम व्यक्ति तक समस्याओं का हल होकर सुख सुविधा उन्हें मिलनी चाहिए या नहीं मिलती है तो दुख होता है और दुख के कारण की खोज डॉक्टर बाबासाहेब ने भी की और भगवान बुद्ध ने भी की।

         ये सब दुख दूर करने के लिए उन्होंने संविधान दिया , आर्थिक और सामाजिक ढांचा बदलने के लिए कैसे सहभागिता यह भी बताएँ फिर भी कोई भी दुख हल करने में सब लोगों की सहभागिता चाहिए ये उनका कहना था इसलिए उन्होंने महाड के तालाब के सत्याग्रह मे अन्य लोग भी जुड़े गये तथा कथित सवर्ण समाज के लोग भी जुड़े बिन दलित सामाजिक कार्यकर्ता भी जुड़े उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो मनुस्मृति में से कोइ पन्ने ठीक नहीं है एसे ढूँढने वाले उनके कार्यकर्ता है एक ब्राह्मण था। नाम सहस्त्रबुद्धे था। 

     सामाजिक समरसता लाने हो तो शिक्षा में कैसे अध्यापक चाहिए ये जानने के लिए एक उदाहरण है। औरंगाबाद में डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर ने मिलिंद स्कूल में अध्यापक के लिए फिजिक्स के प्रोफेसर डॉक्टर हटाटे के साथ इंटरव्यू की बातचीत में उन्होंने पूछा कि आपने अपनी पहली नौकरी कयु छोड़ी ? तो उन्होंने जवाब दिया मैंने सत्याग्रह में भाग लिया इसलिए व्यवस्थापकों ने मुझे निकाल दिया बाबा साहब ने तुरंत उनको अपने यहाँ रख लिया क्योंकि वो ऐसे ही अध्यापक चाहते थे कि समाज के लिए जूझने वाले हो ऐसा समाज तैयार करने वाले हो

        समरसता का उल्लेख संविधान मे कैसे दिखतेहैं संविधान के प्रीयेम्बलमें लिखा है " वी पीपल ऑफ़ इंडिया " , पीपल जाने की जिनकी आज आकांक्षा समान है और राज्यमे अधिकार समान हैं ऐसे लोग जो एक भूमि पर रहते है। community से people  और पीपल से nation बनाने का एक रास्ता है , यानी कि सबकी समरसता सोची गई है

      सामाजिक समरसता के लिए काम करने वालों के लिए एक बहुत बड़ा अच्छा उदाहरण है जिसकी निर्मिति उसने की है , उनकी रक्षा करनी चाहिए छोटी सी अहल्याबाइ ने खेल खेलने के लीए बनायी छोटी शिवलिंग की रक्षा के लिए धूळ उन पर अपना शरीर ढेर दीया जब जोड़ता हुआ घोड़ा वहाँ से नीकला और अन्य लोग उन्हें दूर जाननेको कह रहे थे। भय और अपनी रक्षा को छोड़के  शिवलिंग रक्षा की "क्योंकि उनकी माँ का कहना था हमने जिसकी निर्मित की उनकी रक्षा करनी चाहीए। वो आगे जाकर पेशवा परिवार में आकर महारानी बनी और देवी अहल्याबाइ कहलाइ

      हमारा संविधान भी पोलिटिकल डॉक्यूमेंट नहीं है सोसीयल डॉक्यूमेंट हैं , यानी कि समाज के लिए समाज को जोड़ने के लिए हैं , सिर्फ़ समाज को चलाने के लिए नहीं। समरसता के लिए है। 

     25 Nov 1949 की संविधान सभा में अंतिम भाषण में डॉक्टर बाबासाहेब ने कहा था कि हम  ने लिबर्टी Liberty और  Equality चाहीए  और डेमोक्रेसी तभी रहेगी जब बंधुता हो। संविधान में लिबर्टी और इक्वालिटी की बात है व्याख्या है आर्टिकल है लेकिन बंधुता का कोई आर्टिकल नहीं है क्यों की यह एक भाव है और मानसिकता है। बाबा साहब ने कहा था लिबर्टी और इक्वालिटी और बंधुता मैंने फ़्रांस के संविधान से नहीं लेकिन तथागत भगवान बुद्ध की संदेश से ली है

    Freedom and equality only possibke when there is a fraternity . 

    बंधुता के लिए मैत्री , करुणा मुदीताऔर उपेक्षा चाहिए। 

   मैत्री याने की ज़रूरत वाले को मदद करने के लिए तैयार, पर होना यानी दूसरे के दुख को देख  कर अपना हाथ बढ़ाने के लिए तैयार। मुदीता यानी की दूसरी का उत्कर्ष देखकर आनंदित होना और उपेक्षा यह है कि बुरी चीज़ों से दूर रहना यही सामाजिक समरसता का रास्ता है  

       उन्होंने caste in India महान निबंध में कहा है कि हमारे देश में  Cultural Unit है और Social concept  , पोलीटीकल नही

       Social concept. Means जब देश पर कोई समस्या आती है और अब विवि क्या होता है तो सब लोगों का एक सरीखा प्रतिभाव रहता है। उदा. पुलवामा का हैमलेट के बाद देश मे प्रतिभाव  

     बाबा साहब मानते थे समाज की एकात्मकताएक रहने से और निर्दोष बनने से सामाजिक समरसता निर्माण  होती है

    समरसता के लिए हरहंमेश जगना पड़ता है। एक बार अमेरिका के पत्रकार दिल्ली में आए और स्वतंत्रता आंदोलन में रहे तीन एडवोकेटस को मिलना चाहा गांधीजी , मोहम्मद अली जिन्ना और डो बाबासाहेब अंबेडकर देर रात हो गयी थी गांधीजी को मिलने गए तो वो मौन और थके हुए थे , बात नहीं कर सके। मोहम्मद अली जिन्ना भी सोने के लिए चले गये थे देर रात के समय डो अांबेडकरजी  ही मिल गये और देर रात तक उनके साथ बात हुई और पत्रकारों ने भी पूछा कि आप देर रात तक जगते हो क्याउन्होंने कहा महात्मा गांधी जी और जीन्हा जो प्रभावी समाज का नेतृत्व करते हे सब लोग समझते हैं , जागृत है इसलिए दोनों नेता जल्दी सो सकते है मैं इनका नेतृत्व करता हूँ उस समाज जागृत  नहीं है , सोया हुआ है ,?इसलिए मुझे देर तक जगना पड़ता है। 

    

      सामाजिक समरसतासमाज और शिक्षण विषय की पसंदगी आज के समय की ज़रूरत है सामाजिक समरसता से ही देश का विकास और उनके लिए प्रयास ज़रूरी है सामाजिक समरसता के लिए सामाजिक आंदोलन ज़रूरी है संविधान में भी प्रावधान है। लेकिन समाज के अपने प्रयत्नों से यह ज़्यादा संभव होता है

     सामाजिक समरसता बोहोत चिर पुरातन विषय हैं लेकिन उनकी बार बार पुनः स्वीकृति तो है आज के समय में अधिक अप्रासंगिक है डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर कहते थे कि मुझे समता स्वतंत्रता और बंधुता चाहिए तथागत भगवान बुद्ध की प्रेरणा से लेकर कहा है समता आती है स्वतंत्रता  मुश्किल हो जाती और स्वतंत्रता रखने के लिए समता मुश्किल हो जाती है समता और स्वतंत्रता दोनों को साथ साथ रहना बंधुता के सिवा संभव नही

      सामाजिक समरसता है समाज में निर्मित तो इसलिए क्या क्या हो सकता है

संविधान में प्रावधान

प्रावधानों का अमल

सामाजिक कार्यकर्ता और महापुरुषको कार्य

संतों का योगदान

सामाजिक संस्थाओं का कार्य

शिक्षा संस्थाओं का कार्य

     सबसे चिंता की बात है और वर्तमान राजनीति और राजनेता यह कार्य में बोहोत बाधा है। कई बार देखने को मिलते हैं उनकी स्वार्थ और वोट बैंक की राजनीति इस पे रोक लगा दी है।

          आज यहाँ शिक्षा संस्थान में एकत्रित हुए हैं तो हम ये सोचे की शिक्षा संस्थान का ,विश्वविद्यालय का ,यहाँ के व्यवस्थापक और अधिकारी गणका ,अध्यापकोका, पाठ्यक्रमों का मूल्यांकन हो और विद्यार्थियोकी प्रवृतिओका इसमें क्या रोल रहेना चाहिए 

       समाज में समरसता के अभाव में दिख रहे भेदभाव के प्रसंग तो बोहोत दिखने मिलते हैं मीडिया TV न्यूज़ और आजकल सोशल मीडिया में भी बहुत दिखता है समाज को तोड़ने वाले तत्वों इसको बढ़ा चढ़ाकर की भी दिखाते हैं लेकिन जो प्रेरणादायी है समरसता में उपयोगी है समरसता के प्रतीक हैं ऐसी चीज़ें बहुत कम देखने को मिलती है।उनकी ज़्यादा लोगों की जानकारी में आएँ ये ज़रूरी है।

     सबमे एक ही आत्मा देखना यह हमारे देश के तत्वावधान मे है। बहुत से उदाहरण है जैसे नामदेव ने कुत्ते को सिर्फ़ रोटी नही घी भी चाहीए यह समझकर रोटी लेकर भाग रहे कूते के पीछे घी का बरतन लेकर दौड़े। सन् एक अनाथ नहीं राम इस वर्ग के लिए लिया हुआ गंगाजल रास्ते में पानी की वजह से मर रहे वृद्धि को पिला दिया। रामकृष्ण परमहंस एक दिन अपने एक सफ़ाई कर्मचारी के घर जाकर अपने बालों से उनका साफ किया।

कबीर हो या नरसिह मेहता, रविदास और नारायण गुरु , स्वामी विवेकानन्, रामकृष्ण परमहंस ,नानक देव जी महाराज ,जलाराम बापा ,संत कबीर रामानुजाचार्य , गांधी जी ,डॉक्टर हेडगेवार , परी गुरुजी सभी ने इस दिशा में बहुत कुछ किया इतना ही नहीं अपने आप से कुछ उदाहरण रखे हम सबने ये सुना है लेकिन आज के समय में क्या ये संभव है, हम सोचते है। 

     राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवकों के प्रयत्नों से गुरुवायुर मंदिर दर्शन करने के लिए जा रहे दलितों के लिए रास्ते में सेवा केन्द्र  खड़े किए गए।जो कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए डॉक्टर बाबासाहब तो आंदोलन करना पड़ा था वहीं मंदिर में पंडितों के साथ बातचीत करके दलितों को मंदिर प्रवेश , पूजा प्रसाद ग्रहण पुजारी के वंशजों ने किया दलित संतों के प्रवास में अन्य वर्णके घरो में उनका गृह प्रवेश कीया गया। दलितों को पूजा की  पद्धति सिखाने का कार्यक्रम भी तमिलनाडु में हुआ है और यह सब देखकर नामदेव ढसाल ने दिल्ली में कहा कि सामाजिक समरसता के लिए हमें संघ से बड़ी अपेक्षा है। 

   महात्मा गांधी की ने भी यही बात स्वीकार किया कि जब हम समाज को समरस बनाना चाहते हैं तो छोटे छोटे भेदभाव से ऊपर उठकर हम सबको एकत्रित करने वाला कोई बडा छत्र पकड़ना चाहिए डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर भी इन बात से सहमत थे लेकिन वो कहते थे मुझे ऐसे काम में बहुत से जल्दी करना है दीनदयाल जी कहते थे खड्डेमें पड़े हुए व्यक्ति को ऊपर उठाना है ऊपर वाले को हाथ नीचे देना पड़ेगा और नीचे वाले को हाथ ऊपर उठाना पड़ेगा

     आज मैं ऐसे कुछ प्रसंग सुनाकर मेरी बात करूँगा कड़ी के केशुभाइ करके एक शिक्षक ने अपने धर मे दलित बंधु और नये नियुक्त हुए प्युन को रखा , जीसे किराये का घर नही मील रहा था। वीजापुर के संघचालक डो सुभाषभाइ दवे के घर संघ कार्य प्रवास में जाना हुआ दोपहर के भोजन के समय उनकी अस्पताल के कंपाउंडर के घर ले गए उनके साथ भोजन और सौराष्ट्र से आए हुए अतिथियों के लिए छाछ का इंतज़ाम करने के लिए दौड़े प्रेम और लावणी  का माहौल खड़ा किया। ऐसे समरसता बनती है।

       डॉक्टर अम्बेडकर के जीवन मे भेदभाव के प्रसंग तो काफ़ी कुछ प्रचलित है जिसे महाडके तालाब का पाणी का सत्याग्रह , नासिक के कालाराम मंदिर का प्रवेश का  सत्याग्रह ,बड़ौदा मे रहने के लिए मकान और मुम्बई में नौकरीमे भेदभाव

      हमें समाज में समता समानता चाहिए लेकिन क्या सिर्फ नियम से ,संविधान से ,कुछ क़ानून से या कुछ आरक्षण से ही संभव है क्या ? नहीं बहार का वातावरण  समरसता खड़ी नही कर सकता। आंतरिक फ़ालसे होनी जरुरी है। 

    समरसता के लिए प्रेम चाहिए ,करुणा ,आत्मीयता अंगागी भाव और आध्यात्मिकता चाहीए। आत्म वत सर्वे भूतेषु।

        रामकृष्ण मिशन के ही एक संत का अमेरिका में इंटरव्यू था पत्रकार ने पूछा :संपर्क और जुड़ाव मे क्या फ़र्क़ है ? इसमें क्या होता है ? संत ने तब उसने पूछा

आपके परिवार में कौन है ? आपके पिताजी को आप कब मिले? और साथ में कौन कौन थे ? कितने घंटे साथ रहे ? आप साथ में बैठे ? खाना खाया ? कितने घंटे तक साथ रहे ? वग़ैरह वग़ैरह

        पत्रकार की आँख में आँसू गये स्वामी जी ने कहा कि आपके पिता के साथ अपने संपर्क है लेकिन जुड़ना ही नहीं उनसे जुड़ना , साथ बैठना ,एक दूसरे का ख़याल रखना ,हाथ मिलाना ,हाथ में हाथ मिलाना आत्मीयता यह जुड़ाव है। जुड़ाव ही समरसता है।

      हमारे देश में समाज में एक दूसरे के साथ भाईचारे की बात चलती है ,समरसता की बात चलती है लेकिन संपर्क हैं किन्तु जुड़ाव , जितनी मात्रा में चाहिए इतना नहीं है यानी की समरसता की ज़्यादा अभी भी ज़रूरत है।

         डॉक्टर बाबासाहब के मतानुसार बंधुत्व का मूल्य हैं जब हम समाज का परिवर्तन और भारत का नवनिर्माण करना चाहते हैं तो हमारे समाज में समरसता चाहिए है ,वो कब आएँगी? जब स्वतंत्रता और समानता के साथ बंधुता हो। 

       डॉक्टर बाबा साहेब के समय भी ऐसा समय था कि उनको अपने आप ख़ुद सब संघर्ष करना पड़ा समाजको जैसा चाहिए पैसा बनाना पड़ा आज तो हमारे पास संविधान है ,नियम है ,क़ानून है ,सद्भावना है राजनीतिक लोग साथ में आने का तैयारी बता रहे थे लेकिन जब तक पूरा समाज में यह मन का भाव नहीं आएगा तब तक उसमें संपूर्ण सफलता मिलने का कुछ नहीं कह सकते हैं फिर भी डॉक्टर बाबासाहब और भगवान बुद्ध का कहा याद रखना चाहिए "आत्मा दिपो भव"

        मिलिंद महाविद्यालय में डॉक्टर बाबासाहब ने एक बार बात बतायी उन्होंने कहा तथागत बुद्ध के पास एक आदमी आया और बोला क्यु,?आप सबको ज्ञान सिखाते हैं सब लोग विद्या के अधिकारी नहीं है तब भगवान बुद्ध का जवाब था जैसे सब मनुष्यों अन्न की ज़रूरत है वैसे ही सब को भी ज्ञान की ज़रूरत है

         बाबा साहब का मानना था शिक्षा ही सभ्यता और संस्कृति का आधार है समाज परिवर्तन की प्रक्रिया ठीक करो मनुष्य में रही सुस्षुप्त रही शक्ति को जगाने के लिए , मानवता की ओर ले जाने के लिए व्यक्ति को सामाजिकता प्राप्त करने के लिए , नैतिकता  के लिए , गति को बढ़ाने के लिए शिक्षा की ज़रूरत है  

     शिक्षक :पढे और पढ़ाए समाज की भी समस्या को दूर करना है और समरसता समाज मे निर्माण हो और समाज समता मूलक हो, इसके लिए शिक्षा सबसे बड़ा आवश्यक साधन है।

    शिक्षा यानी विद्या :सिंह का दूध है वो नया उत्साह स्फूर्ति देती है हमारे तीन उपासक देवो में विद्या  का स्थान प्रथम है शिक्षा यानी परीक्षा में सफल होना और डिग्री मिलना इतना काफ़ी नहीं विद्यार्थी को भार वहन करने वाला नहीं , ज्ञान वहन करने वाला बनना पड़ेगा। शिक्षा से जब मन को दृष्टी , विचार सकती और समस्याओं के निवारण की शक्ति बढ़ती है विनय शीलऔर अनुशासन का आत्मा साथ होता है तो अपने आप समरसता आने की शुरुआत होती है। 

    जब शिक्षा में विद्या , विद्या के साथ समझशकति करुणा भरी शील , अच्छा और मैत्री भाव बढ़ता है तो चारित्र का निर्माण होता है और इसके साथ ही समरसता संभव है। 

       सामाजिक समरसता के लिए समाज हित तथा कथित पिछड़ी जातिको आर्थिक और सामाजिक आगे आने के लिए शिक्षा की ज़रूरी है वैसे ही अन्य मददगार जैसे की पुस्तकालय ,,वाचनालयशिक्षक वर्ग स्वाध्याय मंडल इनकी भी इतनी ज़रूरत है बार बार बाबा साहब कहा करते हुए बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना के पीछे भी यही उद्देश्य था

      शिक्षा के लिए भेजकर उनसे सिर्फ़ बाहरी ज्ञान ही आये यह हम नही चाहते, इसमें सिर्फ इंफॉर्मेशन यानी माहिती ही नहीं , आर्थिक और सामाजिक उत्थान हो इसके लिए विश्वविद्यालय को तैयार होना पड़ेगा और सिर्फ़ पाठ्यपुस्तक होते हुए भी प्रायोगिक वर्कशॉप समाज मे बनाया जाये यह भी उतना ही ज़रूरी है

      डॉक्टर बाबासाहेब का मानना था शिक्षा का कार्यक्षेत्र सामाजिक रहना चाहिए अगर शिक्षा से सामाजिक समरसता लानी है तो कहीं प्रायोगिक व्यावहारिक और अनुभवजन्य चीज़ें समाज में जाकर ही मिलेगी

      शिक्षक भी कई से चाहिए कि उन्हें शिक्षा का दान देना है वो पुराना अनुभवी उत्कंठा वाले और कठोर परिश्रम के मालिक चाहिए विद्यार्थियों के साथ घुल मिल जाने की रीत के धनीचाहिए अनुभवजन्य चाहिए और ख़ुद को भी सामाजिक समरसता के लिए मन में दृढ़ संकल्प चाहिए शिक्षक या अध्यापक राष्ट्र के सच्चे अर्थ में सारथी है विद्यालय तीर्थ स्थान है। अध्यापक के पास त्रिसूत्री चाहिए  वांचन , मनन और चिन्तन। 

      विद्यार्थियों के लिए क्या कुछ पढ़ाई करनी है तो कुछ  चीज़ें ही आवश्यक है क्या था डॉक्टर बाबासाहब  पास ? ख़ुद की १२/१२ की छोटे कक्ष  में दस लोगों के साथ ही ,छोटे लेम्प  के प्रकाश में पढे और कितनी सारी डिग्री हासिल की क्रिया सिद्धि सत्वे भवती,महत्ताम नोपकरणे। 

     सामाजिक समरसता के लिए ज्ञान ज़रूरी है लेकिन शिक्षा के माध्यम से मिलेगा  ,तलवार जैसी शिक्षा देना चाहिए क्योंकि तलवार अकेले किसी की गला काटने के लिए नहीं है वह दूसरे किसी की रक्षा भी कर सकेगी 

चरित्र का निर्माण विद्या प्रज्ञा करुणा शील, और मित्रता के आधार पर होता है

       सफल लोकतंत्र की पूर्व शर्त है कि समता अधिष्ठित और मूल्य  अधिष्ठित और नीति मान समाज रचना हो और यह सामाजिक समरसता के बिना संभव नहीं यहाँ संस्कार शिक्षा से ही संभव है।

     बाबा साहब का कहना था उनके तीन गुरु है तथागत भगवान बुद्ध , संत कबीर , ज्योतिबा फूले और वो कहते थे मेरे लिए तीन देवता है विद्या स्वाभिमान और शील  

      जो समाज में कार्य कर रही है वो क्या कर सकते है उसके कुछ उदाहरण :जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी द्वितीय सरसंघचालक गुरु जी की जन्म शताब्दी वर्ष का थीम ही समरसता रखा समरसता के लिए डॉक्टर हेडगेवार का जन्मशताब्दी के समय सेवा विभाग शरु कीया संघ ने अपनी समरसता की गतिविधि भी बनायी है और ऐसे कार्यकर्ताओं द्वारा समरसता मंच का भी निर्माण किया है

      समरसता वालीसाहित्य का निर्माण हो और वैसे उनकी गोष्ठी भी हो ये भी ज़रूरी

       समरसता के लिए हिंदुत्व की प्राण तत्व का जीवन में आचरण ज़रूरी है इसलिए हम विवेकानंद की लाहौर में बताएँगे वो प्रवचन भी शब्द याद रखें और अपने जीवन में उनका व्यवहार करें।

    Mark me, then and then alone you are a Hindu when the very name sends through you a galvanic shock of strength. Then and then alone you are a Hindu when every man who bears the name, from any country, speaking our language or any other language, becomes at once the nearest and the dearest to you. Then and then alone you are a Hindu when the distress of anyone bearing that name comes to your heart and makes you feel as if your own son were in distress. Then and then alone you are a Hindu when you will be ready to bear everything for them, like the great example I have quoted at the beginning of this lecture, of your great Guru Govind Singh


     शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समरसता का विषय हो विद्यार्थियों को समरसता की कुछ अनुभव देखने सुनने और करने मिले का व्यावहारिक प्रयोग समाज की संवेदना का अनुभव प्रायोगिक वर्कशॉप और पाठ्यक्रमों का भी ऐसा निर्माण।

    पाठ्यक्रम में समरसता के लिए हुई कार्यों की कुछ जानकार क्या है जैसे डॉक्टर कृष्ण गोपाल जी ने लिखा हुआ है "सामाजिक समरसता और संत परंपरा "संतों ने कैसे समरसता लाने के लिए काम किया पूरे भारत में संतों का वर्णन है ऐसे कुछ पाठ्यपुस्तक निर्माण हो सकते हैं।

     समाज के विभिन्न वर्गों में विद्यार्थियों का जाना हो और वहाँ ठहरना हो। और अनुभव करना भूज के मेडिकल कॉलेज के छात्रों का ऐसा छोटा सा कार्यक्रम किया गया था जिनका बहुत अच्छा परिणाम देखने को मिला। 

     संत महात्मा कथा का प्रवचन का विषय हो और समाज के दलित वर्ग को बार-बार मिलना होगा ऐसे लोगों को बार बार मिलना शिक्षा संस्थाओं में उनका आना और समाज में उनका जाना इस समरसता के लिए बहुत उपयोगी है।

     शिक्षा में जैसे व्यक्ति का विकास चाहिए अंतर्मुख विकास भी चाहिए और बहिर्मुखी विकास भी चाहिए अंतर्मुख में आत्मकेन्द्रित स्वार्थ भिन्नता और अन्य सुख और संतोष होते हैं लेकिन बहिर्मुखी विकास समाज के साथ ही समरस होने से संभव है और संवेदना से होता है

एक बार सेवा प्रशिक्षण वर्ग के एक ट्रेनिंग कैंप में एक प्रज्ञाचक्षु लड़की थी किसी ने पूछा आप देखती नही फीर सेवा कैसे करेगी ? तब उनका जवाब था मेरे पास आँख नहीं अश्रु ज़रूर है। 

    शिक्षा में समर्पण भाव हो। निरपेक्ष हो और प्रतिष्ठा के लिए नहीं लेकिन समाज ही मेरा सब कुछ है यहाँ पर समरसता करने का प्रयास होना चाहिए।

    देखने से ही संवेदना उत्पन्न होती है एक बार टीम के कुछ लोग झोपड़पट्टी एरिया में खो गई और दिखा छोटी बच्ची को स्किन रोग है, सलाह दी रोज़ नहाना चाहिए लेकिन पानी जब आता  है तब माता पिता घर पे नहीं होती है और घर में कोई बड़ा बर्तन नहीं ,यहाँ पानी ला सकते हैं जो स्किन का रोग का कारण साधनों का अभाव है। 

     दयानंद सरस्वती ने एक बार एक ग़रीब महिलाओं को अपने मृत बालक को नदी में बहाव के समय देखा बालक चलाए जाने के बाद उनका सफ़ेद वस्त्र वापिस ले लिया जब उनके दिल में संवेदना जग उठी क्योंकि वो इतनी ग़रीब थी वस्त्रों की उन्हें ज़रूरत थी

    सामाजिक समरसता का दायरा सिर्फ़ हमारे समाज में  नही पूरे विश्व में मानवता के लिए ज़रूरी है भारत में से विदेश में गए हुए कई लोगों ने ये समरसता का उदाहरण वहाँ भी प्रस्तुत किया है जैसे हिंदू काउंसिल ऑफ़ अाफ्रीका और हिन्दू स्वयंसेवक  संघ, सेवा इंटरनेशनल।

      मैं व्यक्ति मिटकर बनु विश्व मानव :यही हमारे देश की और संस्कृति की सोच है। 

    Charity begins at home let's . And charity begins by self 

हिन्दु पत्तों भवेत 

हिन्दवा सोदरा सर्वे 

समाज ही मेरा भगवान है


(Seminar at BAOU Ahmedabad on 14.4.19)