Thursday, June 13, 2013

कश्मीर में नफरत की फसल काटने वालों का सच


कश्मीर में नफरत की फसल काटने वालों का सच

By Hari Om on June 13, 2013

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कश्मीर में नफरत की फसल काटने वालों का सचकश्मीरी लीडरशिप और उनके दिल्ली और दूसरे भागों में रहने वाले समर्थक इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश करते रहे हैं जैसे कि जम्मू-कश्मीर के मुसलमान भारत से दूर हो गए हैं। यानी के वे अपने को भारत से भावनात्मक रूप से जोड़ कर नहीं देखते। उनकी भारत को लेकर इस तरह की भावना को उसी सूरत में दूर किया जा सकता है बशर्ते कि उन्हेंअपने राजनीतिक भविष्य का फैसला लेने का अधिकार दिया जाए।

सच्चाई यह है कि इस तरह की धारणा पूरी तरह से अधकचरी और सच्चाई से बहुत दूर है। दरअसल, इस तरह का माहौल बनाकर देश को गुमराह करने की खतरनाक कोशिश की जा रही है, ताकि सूबे में जो चाहे किया जा सके।

बेशक, ये कहना मुल्क और मानवता के साथ नाइंसाफी होगी कि जम्मू-कश्मीर के सभी मुसलमान पृथकतावादी और साम्प्रदायिक हैं। वस्तुस्थिति यह है कि राज्य के मुसलमानों का एक छोटा सा ही हिस्सा भारत से नफरत करता है। बेशक, ये भारत से अलग होने के ख्वाब भी देखता है।

कश्मीर घाटी में इस छोटे से वर्ग को कई स्तरों पर विशेषाधिकार मिले हुए हैं। इन्हें दामादों की तरह से मान-सम्मान मिलता है। इनका संबंध मुसलमानों के सुन्नी समुदाय से है। ये छोटी-छोटी घटनाओं को भी इस तरह से पेश करते हैं ताकि वहां पर अवाम सड़कों पर आ जाए। ये सब करने के पीछे इनका मूल मकसद अपने हितों की पूर्ति करना ही रहता है।

अफसोस इस बात पर भी होता है कि कश्मीर में नफऱत की फसल उगाने और काटने वालों को मीडिया का एक वर्ग का खुलकर समर्थन हासिल है।

सरकार इन सब बातों से वाकिफ है । पर फिऱ भी उसकी तरफ से इस तरह की कोई ठोस पहल नहीं होती कि वह इन देश-विरोधी ताकतों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। वह भी इन तत्वों की गतिविधियों को जानने -समझने के बाद भी मूक दर्शक बनी रहती है। उसके इस तरह के रवैये के चलते जम्मू-कश्मीर की राष्ट्रवादी ताकतों को बहुत नुकसान होता है।

इस तथ्य को समझने की जरूरत है कि राज्य की तीन हिस्से हैं। जम्मू,कश्मीर और लद्धाख एक दूसरे भिन्न हैं। जम्मू में हिन्दू बहुमत में हैं। यहां पर ६९ फीसद हिन्दू तथा २७ फीसद मुसलमान हैं। इसमें दस जिले हैं। कठुआ,सांबा,जम्मू,रियसी,ऊधमपुर और रामबन में हिन्दू बहुमत में हैं। डोडा,किश्तवाड़,पूंछ और राजौरी में मुसलमान बहुमत में हैं।

जम्मू रीजन की सबसे खास बात यह है कि यहां पर सभी मजहबों के लोग एक दूसरे के साथ बड़ी ही मोहब्बत,खलूस और अमन के साथ रहते हैं।

कश्मीर घाटी में पृथकतावदी आंदोलन के चलने के बाद भी कभी साम्प्रयादिक दंगा नहीं हुआ। एक बार भी भारत विरोधी प्रदर्शन नहीं हुआ। जम्मू के हिन्दुओं की तरह से वहां के मुसलमान भी कश्मीरी पृथकतावादी तत्वों के इरादों का विरोध करते हैं।

अगर जम्मू क्षेत्र के कुछ हजार मुसलमानों को छोड़ दिया जाए तो ये गैर-कश्मीरी हैं। इनकी हमेशा शिकायत रहती है कि कश्मीरी नेतृत्व का उनको लेकर रुख भेदभावपूर्ण रहता है। वजह यह है कि ये इनके भारत विरोधी आंदोलन का हिस्सा नहीं बनते।

जम्मू क्षेत्र के मुसलमान,जो बड़े पैमाने पर गुर्जर हैं, १९९१ से केन्द्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले। ये सुन्नी हैं। ये जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन की मांग कर रहे है ताकि इन्हें भी वे सारी सुविधाएं हासिल हो सके जो अनुसूचित जनजातियों को मिल रही हैं। एक बात और । जम्मू क्षेत्र के मुसलमानों ने सेना या अर्धसैनिक बलों पर मानवाधिकारों के हनन करने का आरोप कभी नहीं लगाया। ये तो सुरक्षा बलों पर बहुत भरोसा करते हैं।

उधर, लद्धाख क्षेत्र में बौद्ध बहुमत में हैं तो करगिल जिले में शिया। शिया मुसलमानों की भारत को लेकर निष्ठा गजब की है। ये भारतीय सेना का भी साथ देते हैं। ये पाकिस्तान से नफरत करते हैं। ये भी गुर्जर और बक्करवाल मुसलमानों की तरह कश्मीर में चल रही भारत विरोधी गतिविधियों को कुचलने में सेना का साथ देते हैं। दरअसल,जम्मू और लद्धाख जो राज्य के कुल जमा क्षेत्रफल का ८८ फीसद है, पूरी तरह से भारत के पक्ष में है।

अब कश्मीर की भी सुन लीजिए। जम्मू की तरह से इसके भी दस जिले में हैं। इनमें लगभग सौ फीसद मुसलमान हैं।

इधर भी कुछ असंतुष्ट तत्वों को अगर छोड़ दिया जाए तो अधिकतर का कश्मीर घाटी में चल रहे साम्प्रदायिक आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है।

कश्मीर के शिया अपने सूबे में पृथकतावादी आंदोलन का कसकर विरोध करते हैं। हां, इनमें वे शामिल नहीं हैं,जो हुर्रियत नेता अब्बास अंसारी और दूसरे शिया नेताओं जैसे मौलवी इफ्तिखार अंसारी के असर में हैं। इनकी भी तादाद कुछ हजारों में ही होगी।

शिया,गुर्जर,बक्करवाल और पठवारी बोलने वाले मुसलमानों में और मूल कश्मीरी मुसलमानों में बहुत अंतर है संस्कृति के स्तर पर। इनके अलावा दर्द और बाल्टी मुसलमान भी हैं। ये भी पृथकतावादी आंदोलन के हक में नहीं है। अब जरा गौर कीजिए की कि जम्मू क्षेत्र के मुसलमानों को गुर्जर,बक्करवाल,पठवारी जुबान बोलने वाले, शिया, दर्द और बाल्टी मुसलमानों केसाथ जोड़ दिया जाए तो ये बहुमत में होंगे।

इनकी संख्या उनसे अधिक है,जो कश्मीरी बोलने वाले सुन्नी मुसलमान हैं। गौर करने लायक बात यह है कि ये भी एक नहीं हैं। ये भी सजातिय नहीं हैं। ये मोटे तौर पर पांच समूहों में बंटे हुए हैं। कोई पाकिस्तान के साथ विलय चाहता है, कोई आजादी,कोई भारत-पाकिस्तान का संयुक्त नियंत्रण,स्वायत्तता, सेल्फ रूल और कोई भारत से मिलने के हक में है। तो अब आपने जान ली होगी कश्मीर की हकीकत।

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