Friday, October 4, 2013

कौन थे सत्यनारायण गोयंका ?


कौन थे सत्यनारायण गोयंका ?


 डॉ. वेदप्रताप वैदिक

 क्या आप जानते हैं कि सत्यनारायण गोयंका कौन थे? उनका निधन 29 सितंबर को मुंबई में हो गया। वे लगभग 90 वर्ष के थे। उन्होंने भारत का ही नहीं, संपूर्ण मानव जाति का इतना कल्याण किया है कि कई प्रधानमंत्री मिलकर भी नहीं कर सकते। लेकिन विडंबना है कि हमारे देश में अपूज्यों की पूजा होती है और पूज्यों की अपूजा। गोयंकाजी विपश्यना के महर्षि थे। विपश्यना बौद्ध काल से चली आ रही अदभुत साधना पद्धति है। वह भारत में लगभग लुप्त हो गई थी लेकिन बर्मा में एक बौद्ध संत उबा सिन उसे जीवित रखे हुए थे। खुद गोयंकाजी ने मुझे बताया कि उनके सिर में मरणांतक पीड़ा रहती थी। उन्होंने सारे इलाज करा लिए। जापान और अमेरिका के डाक्टर भी टटोल लिए लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। वे रंगून के नामी गिरामी व्यवसायी थे। कट्टर आर्यसमाजी थे।

एक दिन वे रंगून में अपनी कार से कहीं जा रहे थे कि उनकी नजर उबा सिन के शिविर पर पड़ी। वे उसमें शामिल हो गए। उन्होंने तीन दिन विपश्यना की और क्या देखा कि उनका सिरदर्द गायब हो गया। चित में अपूर्व शांति आ गई। उन्होंने अपने व्यापार आदि को तिलांजलि दी और विपश्यना साधना-पद्धति को पुनर्जीवित करने का संकल्प कर लिया। वे 14 वर्ष तक रंगून में ही विपश्यना का अभ्यास करते रहे और फिर 1969 में भारत आ गए। विपश्यना का सरल पाली नाम विपासना है। उन्होंने लाखों लोगों का विपासना सिखाई। इस समय 90 देशों में उनके 170 केंद्र चल रहे हैं। लगभग 60 भाषाओं में विपासना के शिविर आयोजित होते हैं। यह शिविर 10 दिन का होता है। दसों दिन साधक को मौन रहना होता है। एक समय भोजन करना होता है। लगातार कई घंटों तक शरीर को हिलाए-डुलाए बिना एक ही मुद्रा में बैठे रहना होता है। और जो मुख्य काम करना होता है वह है-अपनी आती और जाती सांस को निरंतर महसूस करते रहना होता है। यह अत्यंत सहज ध्यान प्रक्रिया है। गोयंकाजी मुझे आग्रहपूर्वक अपने साथ काठमांडो ले गए थे और उन्होंने मुझसे यह साधना करवाई। मैं कह सकता हूं कि बाल्यकाल से अब तक मैंने जितनी भी ध्यानसाधानाएं की हैं, उनमें मुझे यह सबसे सहज और सबसे क्रांतिकारी लगी। इस साधना से चित्त की ,अचेतन मन और अवचेतन की सारी गांठें खुल जाती है। चित्त निर्ग्रन्थ हो जाता है। पूज्य सत्यनारायण गोयंकाजी और उनके बड़े भाई कोलकाता-निवासी बालकिशनजी गोयंका का मुझसे उत्कट प्रेम था। अब दोनों भाई नहीं रहे।

अभी तीन-चार माह पहले मुंबई गया तो मैंने फोन किया। सचिव ने बताया कि पुज्य गुरुजी आजकल किसी से नहीं मिलते लेकिन आधे घंटे बाद ही उन्होंने मुझे बुलवा लिया। वह अंतिम दर्शन अत्यंत दिव्य था। जब उन्होंने तीन चार साल पहले मुंबई में विश्व का सबसे बड़ा पैगोडा बनवाया तो उद्घाटन में इस अकिंचन को भी याद किया। काठमांडो में जब उन्होंने साधना के बीच में मुझे बुलवा कर  लगातार सात घंटे बात की तो उनके पांव सुन्न हो गए, क्योंकि वे एक ही मुद्रा में बैठकर बात करते रहे। मेरी कुख्याति हुई। उनके निजी अनुचर मुझे वही "सुन्न करने वाले पंडितके नाम से जानते हैं। जैसे बाबा रामदेव ने करोड़ों लोगों के शरीर को निरोग करने का उपक्रम किया है, वैसे ही  गोयंकाजी ने करोड़ों लोगों के मन को निरोग कर दिया है। भगवान बुद्ध की इस अदभुत देन विपासना के महर्षि पूज्य सत्यनारायण जी गोयंका को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि!

 



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