Tuesday, August 21, 2012

असम में हिंसाचार : एक स्थायी उपाय / मा.गो. वैद्य

असम में हिंसाचार : एक स्थायी उपाय / मा.गो. वैद्य

असम में हिंसाचार : एक स्थायी उपाय / मा.गो. वैद्य

Error! Filename not specified.
Error! Filename not specified.


मा. गो.
वैद्य

Error! Filename not specified.
असम के कोक्राझार जिले में फूटा हिंसाचार अब रूका है. 'अब' यह शब्दमहत्त्व का है. वह फिर कब फूट पड़ेगा इसका भरोसा नहीं. दोनों पक्ष के लाखों लोगनिर्वासित शिविरों में रह रहें हैं. कई गांव बेचिराख हुए हैं.

अंतर


इस हिंसाचार में एक पक्ष
'बोडो' जनजाति का है, तो दूसरा पक्ष बांगला देश में सेअवैध रूप से भारत में घुसे मुस्लिम घुसपैंठियों का है. हिंसाचार कितना भीषण होगा, इसका अंदाज, प्रथम प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और फिर तुरंत गृहमंत्री (अर्थात्पहले के) पी. चिदंबरम् ने इस हिंसाचारग्रस्त भाग को दी भेट से लगाया जा सकता है. औरयह भी अंदाज लगाया जा सकता है कि, इस हिंसाचार में, जीवित एवं वित्त हानि मुसलमानोंकी अधिक हुई होगी. बोडों की अधिक हानि हुई होती, और मुसलमान का पक्ष मजबूत होता, तोप्रधानमंत्री और गृहमंत्री निश्‍चित ही वहॉं दौडकर नहीं जाते. १९८९ में कश्मीर कीघाटी में से तीन-चार लाख हिंदू पंडितों को निर्वासित होना पड़ा था. इन पंडितों परअत्याचार कर उन्हें पलायन करने के लिए बाध्य करने में स्थानिक मुस्लिमों का ही हाथथा, यह बताने की आवश्यकता नहीं. गया कोई प्रधानमंत्री उन निर्वासित पंडितों के आँसूपोछने? या तत्कालीन गृहमंत्री ने हमलावरों को नियंत्रित करने के लिए उठाए कठोर कदम? नहीं. उस समय विश्‍वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री और मुफ्ति महमद सईद गृहमंत्री थे.उनकी सत्ता अधिक समय तक नहीं टिकी, यह सच है. १९९१ में पी. व्ही. नरसिंह रावप्रधानमंत्री बने. उन्होंने निर्वासित पंडितों का हाल-चाल पूछा? वे तो पूरे पॉंचवर्ष प्रधानमंत्री थे. लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में पंडितों के स्वगृह मेंपुनवर्सन के लिए कुछ नहीं किया, इतना ही नहीं, निर्वासितों को दिलासा देने के लिएउनकी छावनियों को भेट देने का भी कष्ट नहीं किया. कारण, इस मामले में अन्यायग्रस्तऔर अत्याचार पीडित हिंदू थे. वे मुसलमान होते तो इन लोगों का आचरण अलग होता. और वहस्वाभाविक ही कहा जाना चाहिए. कारण, मुसलमानों की जैसी मजबूत व्होट बँक है, वैसीहिंदूओं की नहीं. हिंदू अनेक गुटों में विभक्त है.

क्रिया-प्रतिक्रिया


तात्पर्य यह कि
, कोक्राझार जिले में और समीपवर्ती क्षेत्र में भी मुसलमानों कीजीवित और वित्त हानि अधिक हुई. लेकिन मुसलमानों को यह प्रतिक्रिया के स्वरूप भोगनापड़ा है. हिंसक क्रिया उनकी ओर से प्रथम हुई और फिर बोडो जनजाति की आरे से उसकीतीखी प्रतिक्रिया हुई. हमारे देश में एक विचित्र सेक्युलर मानसिकता बनी है. यहमानसिकता मूलत: कारणीभूत हुई क्रिया को भूल जाती है और प्रतिक्रिया पर ही आलोचना केकोडे बरसाती है. बहुचर्चित गोध्रा का ही उदाहरण ले. पहले कृति मुसलमानों की ओर सेहुई. ५७ हिंदू कारसेवकों को रेल के डिब्बे में बंद कर, उन्हें जिंदा जलाकर मौत केघाट उतारा गया. इसकी अकल्पित तीव्र प्रतिक्रिया गुजरात के अन्य भागों में हुई.गुजराती आदमी सौम्य प्रकृति के होते हैं, ऐसी उनकी देशभर में प्रतिमा है. लेकिन वेभी गोध्रा के अमानुष अत्याचार से भडक उठे. और सही-गलत का विवेक गवॉंकर उन्होंने उसअत्याचार का बदला लिया. मुझे नहीं लगता कि, कोई भी सरकार या कोई भी राजनीतिक नेतातुरंत संपूर्ण राज्य की जनता को भडका सकता है. जनता ही भडकी. अब प्रकरणन्यायप्रविष्ठ है. अपराधियों को सजा सुनाई जा रही है. उसके समाचार भी प्रमुखता सेप्रकाशित एवं प्रसारित किए जा रहे हैं. लेकिन उन ५७ निरपराध कारसेवकों को, जिन्होंने रेल रोककर जिंदा जलाया, उनके विरुद्ध के मुकद्दमें का समाचार क्या हमनेसुना है? निश्‍चित ही उस कृत्य में के अपराधियों पर मुकद्दमें चलें होंगे. उनकेमुकद्दमें के फैसले का समाचार क्यों नहीं फैलता? वे अपराधी मुसलमान है इसलिए? प्रसारमाध्यमों ने ही इसका उत्तर देना चाहिए.

घूसखोरी


यह कुछ विषयांतर हुआ. हमारा आज का विषय है कोक्राझार में का हिंसाचार. बोडो
क्यों इतने भडके? वैसे वे पहले भी भडके थे. लेकिन मुसलमानों पर नहीं. असम की सरकारपर. वे उनकी बहुसंख्या का क्षेत्र असम से अलग चाहते थे. इसके लिए उनकी एक संस्था भीस्थापन हुई थी. 'बोडो लिबरेशन टायगर्स' ऐसा उस संस्था का नाम है. लेकिन समझौते सेवह प्रश्‍न हल किया गया. २००३ में वह समझौता हुआ. इस समझौते के अनुसार 'बोडोटेरिटोरियल कौन्सिल' (बोटेकौ) की स्थापना की गई और उसे कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए.'बोटेकौ' में स्वाभाविक ही बोडों का वर्चस्व रहेगा. लेकिन यह वर्चस्व, इस प्रदेशमें के मुसलमानों को सहन नहीं होता. इस बोडोलॅण्ड के प्रदेश में कुछ स्थानीयमुसलमान भी हैं. उनमें और बोडो में झगडा नहीं. नहीं था, ऐसा कहना शायद अधिक योग्यहोगा. लेकिन वहॉं बांगला देश में के मुसलमान बड़ी संख्या में घुसपैंठ कर घुसे है.इन घुसपैंठियों ने वहॉं का वातावरण बिगाडा है.

सत्ता-लालची


इन मुस्लिम घुसपैंठियों ने करीब ३५ प्रतिशत सरकारी
'खास' भूमि पर अतिक्रमण कियाहै. सरकार उस बारे में कुछ भी नहीं करती. असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का एकनिर्लज्ज विधान अनेकों को स्मरण होगा ही. गोगोई ने कहा था कि, असम में कोई भी अवैधघुसपैंठी नहीं. सब असम में के ही है. गोगोई से पूछना चाहिए कि, असम के २७ जिलों मेंके ११ जिलें मुस्लिमबहुल कैसे बने? क्या वे १५ ऑगस्ट १९४७ को ही मुस्लिमबहुल थे? पुराने असम का एक सिल्हट जिला मुस्लिमबहुल होने का संदेह था. वहॉं जनमत संग्रहकराया गया; और बहुमत पाकिस्तान के पक्ष में हुआ. वह जिला पाकिस्तान में उस समय केपूर्व पाकिस्तान में मतलब आज के बांगला देश में समाविष्ट किया गया. और कोई भीजिला यदि मुस्लिमबहुल होता, तो पाकिस्तानी नेतृत्व उसे भारत में रहने देता? गोगोईने उत्तर देना चाहिए कि, बांगला देश की सीमा से सटे यह ११ जिले मुस्लिमबहुल कैसेबने? लेकिन वे उत्तर नहीं देंगे. अल्पसंख्य मुस्लिमों के व्होटबँक पर उनकी सत्तानिर्भर है. और ये लोग इतने स्वार्थी और सत्ता लालची है कि, सत्ता के लिए देश-हित कोआग लगाने से भी नहीं हिचकेंगे.

चिनगारी


वहॉं समस्या बांगलाभाषी घुसपैंठियों की है. उनकी शिकायत है कि
, 'बोटेकौ' पर उनकावर्चस्व नहीं है. यह तो होगा ही. जिन घुसपैंठियों का सात्म्य (assimilation) हुआहै, उन्हें नागरिकता के अधिकार हैं ही. लेकिन इतने से वे समाधानी नहीं. यह झगडे कीजड़ है. और २००८ से इस झगडे ने गंभीर स्वरूप धारण किया है. अर्थात् आक्रमणमुसलमानों की ओर से ही प्रारंभ हुआ है. 'ऑल बोडो स्टुडंट्स युनियन' के भूतपूर्वअध्यक्ष और राज्य सभा के भूतपूर्व सांसद यु. जी. ब्रह्म बताते है कि, गत दो वर्षोंमें दो सौ बोडो की हत्या हुई है. गोगोई साहब, आप ही बताए यह कत्तल किसने की? क्याबोडो ने ही बोडो की हत्या की? या बोडोबहुल प्रदेश में जो बिल्कुल थोडी जनजाति केलोग हैं, उन्होंने बोडो की हत्या की? उत्तर साफ है. धाक जमाने के लिए मुसलमानों नेही उनकी हत्या की. गत जुलाई माह के अंत में जो हिंसाचार हुआ, उसकी जड़ भी मुसलमानोंके आक्रमक स्वभाव में है. घटना २० जुलाई की है. प्रदीप बोडो और उनके तीन मित्रकोक्राझार में से नरबाडी इस मुस्लिमबहुल भाग से जा रहें थे. बोडो और मुस्लिमघूसपैंठियों में तनाव था ही. इसलिए प्रदीप की पत्नी के उन्हें चेतावनी दी कि, वहॉंसे न जाए. लेकिन प्रदीप ने उसकी बात नहीं मानी. रात ८.३० को समाचार आया कि प्रदीपऔर उनके तीन मित्रों की हत्या की गई है. पहले उन पर हमला किया गया. तुरंत पुलीस आई.पुलीस इन चारों को ले जा रही थी. तब मुसलमानों के जमाव ने पुलीस की गाडी रोकी, उनचारों को बाहर निकाल और उन पर कुल्हाडी से वार कर उनकी हत्या की.

बदले की प्रतिक्रिया


संपूर्ण कोक्राझार जिले के साथ समीपवर्ती क्षेत्र में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई.
पहले तो मुसलमानों को लगा की यह उनके लिए एक अवसर है और उन्होंने बोडो की बस्तियोंपर आक्रमण कर बोडो के अनेक घर जला डाले. कुछ बोडो ने प्रतिकार किया, तो उनकी हत्याकर दी गई. फिर बोडो ने पलटकर हमला किया. गोसाईगॉंव में बोडो निर्वासितों का एकशिबिर है. उसमें फिलहाल ३४१९ निर्वासित रहते हैं. इस शिबिर का प्रमुख रूपक बसुमतरायबताता है कि, जब हमने हमारे ही पड़ोसियों को हमारे घर जलाते देखा, तब हमने भी बदलालेने का निश्‍चय किया और हमारे लोगों ने भी मुस्लिम बस्तियों पर हमले शुरू किए.उनके घर जलाए. इस प्रतिक्रिया के कारण मरनेवालों में और निर्वासितों में मुसलमानोंकी संख्या अधिक है. इस कारण कॉंग्रेस की सरकार में हलचल हुई और प्रधानमंत्री तथागृहमंत्री के दौरे के बाद पुलीस ने और उनकी सहायता के लिए गई सुरक्षा टुकडियों नेहिंसाचार रोका. फिलहाल वहॉं तनावपूर्ण शांति है. लेकिन अब बोडो कहते है कि, मुसलमानों को हमारे पडोसी स्वीकार करने की हमारे मन की तैयारी नहीं. इन पडोसियों नेही हमारे घर जलाए हैं.

कुछ समय बाद यह क्षुब्ध भावनाएँ शांत होगी. प्रतिकार का आघात इतना जबरदस्त होगा
इसकी कल्पना भी मुसलमानों ने नहीं की होगी. वे भी सही तरीके से रहेंगे. 'बोटेकौ'मेंबोडो का ही वर्चस्व रहेगा यह भी वे मान्य करेंगे और कम से कम कोक्राझार औरसमीपवर्ती क्षेत्र में फिर शांतता स्थापित होगी. हर कोई यही चाहेगा.

खतरा


लेकिन मूल घूसपैंठ का प्रश्‍न वैसे ही रहेगा. इन घुसपैंठियों की संख्या भी बढ़
रही है और संख्या के साथ उनकी हिंमत भी बढ़ रही है. असम में उन्होंने ने अपनी एकअलग राजनीतिक पार्टी भी बनाई है. 'युनायटेड डेमोक्रॅटिक फ्रंट' ऐसा उसका निरुपद्रवीनाम है. लेकिन वह केवल मुस्लिमों की पार्टी है. आज असम की विधानसभा में, सत्ताधारीकॉंग्रेस के बाद इसी पार्टी के सदस्यों की संख्या आती है. भाजपा तीसरे क्रमांक परहै. यह घुसपैंठ ऐसे ही चलती रही (वह कॉंग्रेस पार्टी के व्होट बँक की खुशामद कीराजनीति से निश्‍चित ही बढ़ेंगी) तो कल उनकी सत्ता भी स्थापन हो सकती है.

स्थायी उपाय


इस पर एक स्थायी उपाय है. ये घुसपैंठी बांगला देश में से आते है. कारण वहॉं भूमि
कम और जनसंख्या अधिक है. १९४७ में निर्मित संपूर्ण पाकिस्तान में, पूर्व पाकिस्तानमतलब आज के बांगला देश की जनसंख्या अधिक थी. लेकिन संपूर्ण पाकिस्तान केसत्ता-सूत्र पूर्व के पास न जाय, इसलिए पूर्व भाग के लोकप्रिय नेता मुजीबुर रहेमानको पाकिस्तान की सेना की सरकार ने जेल में डाला था और इसी बात पर पूर्व पाकिस्तानविरुद्ध पश्‍चिम पाकिस्तान ऐसा रक्तरंजित संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में, भारत पूर्वपाकिस्तान के समर्थन में खड़ा हुआ और पूर्व पाकिस्तान स्वतंत्र हुआ. वहीं आज काबांगला देश है. आज बांगला देश की जनसंख्या १५ करोड़, तो पश्‍चिम पाकिस्तान की १७करोड़ है. बांगला देश की जनसंख्या कम क्यों हुई? कारण वे भारत में घुसपैंठ करतेहैं. बांगला देश का क्षेत्रफल करीब देड लाख चौरस किलोमीटर है, तो पाकिस्तान का करीब८ लाख चौरस किलोमीटर. बांगला देश की भूमि पर जनसंख्या का दबाव है. इस कारण, वहॉं केलोग भारत में घुसपैंठ करते है. इसका स्थायी उपाय यह है कि, बांगला देश भारत मेंविलीन हो जाए. जिस भाषा के मुद्दे पर उनका पश्‍चिम पाकिस्तान के साथ संघर्ष हुआ, उसभाषा को भारत में निश्‍चित ही सम्मान मिलेगा. कारण भारत में के पश्‍चिम बंगाल कीभाषा बंगाली ही है. मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण, वहॉं का मुख्यमंत्रीस्वाभाविक मुसलमान ही रहेगा. मतलब शासन उनका ही रहेगा. भारत में विलीनीकरण होने केबाद अवैध घुसपैंठ का प्रश्‍न ही नहीं शेष रहेगा. वे खुलकर कहीं भी रह सकेंगे. भारतपंथनिरपेक्ष है, इस कारण उन्हें उनके धर्म-मतानुसार आचरण करने की स्वतंत्रता काकायम भरोसा रहेगा. सुरक्षा के खर्च में कमी होकर वह पैसा विकास के काम के लिए खर्चकिया जा सकेगा. और भारत की पूर्व सीमा भी सुरक्षित हो जाएगी. ऐसे लाभ ही लाभ है.बांगला देश में आज जनतंत्र है. वहॉं की जनता इस विकल्प का गंभीरता से विचार करें, ऐसा लगता है.

--

धन्यवाद्,

--
संजय कुमार

No comments: