Wednesday, July 16, 2014

Gutupurnima

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> -गुरु पूर्णिमा
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> गुरु के बिना राष्ट्र धर्म भी नहीं : तरुण विजय
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> तारीख: 05 Jul 2014 14:56:55
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> मगध  के छिन्न-भिन्न हो रहे साम्राज्य को कौन बचाता अगर चन्द्रगुप्त के
> चाणक्य ना होते? बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू राष्ट्र की रक्षा
> कौन करता अगर छत्रपति शिवाजी के समर्थ गुरु रामदास ना होते? गुरू गोदिं
> सिंह का खलसा पंथ कैसे सिरजा जाता तथा भारत और समाज की रक्षा कैसे होती
> अगर गुरु ग्रंथ साहिब की अमर बाणी ना होती? वर्तमान भारतवर्ष की पराधीनता
> की बेडि़यां तोड़कर स्वतंत्रता और हिन्दू स्वाभिमान की क्रांति कैसे
> प्रारंभ होती अगर डा. हेडगेवार के साथ भगवा ध्वज की शाश्वत बलिदानी
> परम्परा का गुरु-बल ना होता?
> भारत के प्राण सभ्यतामूलक संस्थाओं में बसे हैं। माता, पिता और गुरु-ये
> वे संस्थान हैं जिन्होंने इस देश की हवा, पानी और मिट्टी को बचाया।
> रामचरित मानस में श्रीराम के बाल्यकाल के गुणों में सबसे प्रमुख है
> मात-पिता गुरु नाविही माथा। वे माता-पिता और गुरु के आदेश से बंधे थे और
> जो भी धर्म तथा देश के हित में हो वही आदेश उन्हें माता-पिता और गुरु से
> प्राप्त होता था। जब वे किशोरवय के ही थे और उनकी मसें भी नहीं भीगी थीं
> तभी गुरु वशिष्ठ उन्हें देश, धर्म और समाज की रक्षा के लिए उनके पिता
> दशरथ से मांग कर ले गये। जब देश संकट में हो और धर्म पर मर्दायाहीनता का
> आक्रमण हो तो समाज के तरुण और युवा शक्ति क्या सिर्फ अपना कैरियर और
> भविष्य को बनाने में लगी रहे? यह गुरू का ही प्रताप और मार्गदर्शन होता
> है कि वह समाज को राष्ट्र तथा धर्म की रक्षा के लिए जागृत और चैतन्य करे।
> जब कश्मीर के हिन्दू पंडितों पर संकट आया और इस्लाम के आक्रमणकारियों ने
> उन्हें घाटी से बाहर खदेड़ दिया तो कश्मीर से 11 पंडित गुरु तेग बहादुर
> साहिब के पास आये। उनकी व्यथा सुनकर गुरु तेग बहादुर साहिब बहुत पीडि़त
> हुए। उनके मुंह से शब्द निकले कि आपकी रक्षा के लिए तो किसी महापुरुष को
> बलिदान देना होगा। उस समय नन्हें बालक गोबिंद राय, जो कालांतर में गुरु
> गोबिंद कहलाए, हाथ जोड़कर बोले, हे सच्चे पातशाह, आपसे बढ़कर महापुरुष
> कौन हो सकता है? गुरु तेग बहादुर साहिब ने गोबिंद राय को आशीर्वाद दिया
> और कश्मीरी पंडितों की रक्षा की। यह गुरु तेग बहादुर साहिब का बलिदान ही
> था कि उन्हें हिन्द की चादर कहा गया। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद
> गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों साहिबजादे, जोरावर सिंह और फतेह सिंह सरहंद
> के किले में काजी के द्वारा जिंदा दीवार में चिनवा दिये गये। वीर हकीकत
> राय ने धर्म के लिए प्राण दे दिये लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। यह कौन सी
> शक्ति थी जो उनके पीछे काम कर रही थी? वह कौन सा ज्ञान धन था कि जिसने इन
> वीरों के ह्रदय में राष्ट्रधर्म की रक्षा के लिए आत्मोत्सर्ग करने की
> हिम्मत भर दी?
> शिष्य क्या, दुर्जन तक का कल्याण कर देता है गुरु : मुरारी बापू
> आचार्य बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपनी अमरकृति आनंद मठ में उन्हीं
> महान आचार्यों की खड्गधारी परम्परा का अद्भुत और आग्नेय वर्णन किया है जो
> भवानी भारती की रक्षा के लिए शत्रु दल का वैसे ही संहार करते गये जैसे
> महिषासुर मर्दिनी शत्रुओं का दलन करती है। वंदेमातरम् के जयघोष के साथ जब
> संन्यासी योद्धा अश्व पर सवार होकर शत्रुओं पर वार करते थे तो अरिदल
> संख्या में अधिक होते हुए भी काई की तरह फटता जाता था। वंदेमातरम् से
> विजयी आकाश नादित हो उठता था।
> डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की
> स्थापना की तो परम पवित्र भगवा ध्वज को अपना गुरू मानने के पीछे यही कारण
> था कि वे शताब्दियों से सिंचित सभ्यता और संस्कृति के बल से हिन्दू
> राष्ट्र को जीवंत करना चाहते थे। यदि राष्ट्र के घटकों की स्मृति में
> त्याग, तप और बलिदान की विजयशाली परम्परा जीवित है तो दुनिया की कोई
> शक्ति ना उन्हें परस्त कर सकती है और ना ही पराधीन बना सकती है। भगवा
> ध्वज रामकृष्ण, दक्षिण के चोल राजाओं, सम्राट कृष्णदेव राय, छत्रपति
> शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह और महाराजा रणजीत सिंह की पराक्रमी परम्परा और
> सदा विजयी भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। इसमें यदि सम्राट हर्ष और
> विक्रमादित्य का प्रजा वत्सल राज्य अभिव्यक्त होता है तो व्यास, दधीचि और
> समर्थ गुरु रामदास से लेकर स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानंद, महर्षि
> अरविंद, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद तक का वह आध्यात्मिक तेज भी
> प्रकट होता है जिसने राष्ट्र और धर्म को संयुक्त किया तथा आदिशंकर की
> वाणी से यह घोषित करवाया कि राष्ट्र को जोड़ते हुए ही धर्म प्रतिष्ठित हो
> सकता है। जो धर्म साधना राष्ट्र और जन से विमुख हो केवल अपने मोक्ष के
> लिए कामना करे वह धर्म साधना भारत के गुरुओं ने कभी प्रतिष्ठित नहीं की।
> स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए उसका उद्देश्य
> 'आत्मनो मोक्षार्थ जगद् हिताय च' रखा। अर्थात मनुष्यों के कल्याण में ही
> मेरा मोक्ष है।
> राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का रक्षा कवच बना और उसके स्वयंसेवक
> प्रधानमंत्री पद से लेकर देश के सीमावर्ती गांवों तक में भारत के नये
> अभ्युदय के लिए कार्य कर रहे हैं और इसके पीछे भारत की सभ्यता और
> संस्कृति का तपोमय बल है जो गुरु परम्परा से ही जीवित रहा है। इसलिए गुरु
> पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में करोड़ों स्वयंसेवक भगवा ध्वज के समक्ष
> प्रणाम निवेदित करते हुए शुद्ध समर्पण भाव से गुरु-दक्षिणा अर्पित करते
> हैं। यह न तो शुल्क है और न ही चंदा। यह राष्ट्र के लिए बलिदानी भाव से
> ओत-प्रोत स्वयंसेवकों का श्रद्धामय प्रणाम ही होता है जो दक्षिणा राष्ट्र
> रक्षा करते हुए शिवाजी ने समर्थ गुरु रामदास को दी। राष्ट्र रक्षा का वही
> संकल्प संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज

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