Friday, February 15, 2013

Fwd: खाड़ी देशों में बंगलादेशियों पर प्रतिबंध



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बंगलादेशियों पर प्रतिबंध

तारीख: 10/6/2012

खाड़ी देशों में

बंगलादेशियों पर प्रतिबंध

 

मुजफ्फर हुसैन

पिछले दिनों निर्गुट देशों एवं इस्लामी देशों के सम्मेलन समाप्त होते ही खाड़ी के देशों ने अपने यहां काम कर रहे बंगलादेशियों को देश छोड़ जाने का हुक्म क्यों दे दिया? शायद उन्हें पता लग गया कि अमरीका की नाक दबाने के लिए अब अरब अमीरात के देशों का उपयोग किया जाएगा। सम्मेलन में शामिल देश मुस्लिम आतंकवादियों की पीठ थपथपाएंगे। इससे उन्हें धन भी मिलेगा और एशिया के एक बड़े भूभाग से अमरीका को पीछे हटना पड़ेगा। इसलिए अरब अमीरात के देश सावधान हो गए हैं। उनके यहां काम कर रहे बंगलादेशी कट्टरवादियों का समर्थन कर सकते हैं इसलिए अपनी सुरक्षा की खातिर अरब अमीरात के देशों ने अपने यहां काम कर रहे बंगलादेशियों को निकाल देने एवं भविष्य में उनके आने पर प्रतिबंध लगा देने की पहल शुरू कर दी है। उक्त दोनों सम्मेलनों में सऊदी राजा और ईरान के राष्ट्रपति ने एक स्वर में एक बांग दी कि सारी दुनिया के मुस्लिम आपस में भाई का रिश्ता रखते हैं जिसका नाम कौम दिया गया है। लेकिन दुनिया के झगड़ों और विवादों पर नजर डालें तो संभवत: मुस्लिम राष्ट्रों में जितने विवाद और झगड़े हैं वे किसी अन्य समाज और मत में नहीं। मुसलमानों ने ही मुसलमानों पर अत्याचार किया है। इस मामले में इतिहास की अनेक घटनाएं साक्षी हैं। शिया और सुन्नी के रूप में इराक और ईरान में ही युद्ध नहीं होता है, बल्कि भाषा, रक्त, राष्ट्रीयता और सम्प्रदाय के झगड़ों से मुस्लिम समाज भरा पड़ा है। हर देश का मुसलमान तेल उत्पादक अरब राष्ट्रों के मुसलमान जैसा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और मजबूत नहीं है। अरब देशों में अन्य मुसलमानों के साथ क्या होता है इसका भी एक लम्बा और दुखद इतिहास है। भारत में जब बंगलादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध आवाज बुलंद की जाती है तो अनेक मुस्लिम नेताओं के मुंह से यह शब्द सुनाई पड़ते हैं कि बंगलादेशी मुस्लिम हैं इसलिए भारत में उनके साथ अन्याय होता है। लेकिन क्या इन बंगलादेशियों से अन्य देशों के मुसलमान खुश हैं? यदि यह जानना है तो खाड़ी के देशों ने मिलकर बंगलादेशियों को जिस तरह से निकालने का निर्णय किया है उसके बारे में आप क्या विचार करेंगे?

निकालो बंगलादेशियों को

अलखलीज से लेकर कुवैत टाइम्स और सऊदी गजट से लेकर अलजजीरा नेटवर्क ने इन समाचारों को बड़ी खबर के रूप में अपने मुखपृष्ठों पर चमकाया है। अखबार लिख रहे हैं कि पिछले दो सप्ताह से अरब, अमीरात, यूएई ने बंगलादेशी मजदूरों को वीजा जारी करना बंद कर दिया है। वहां के अरब नागरिकों से कहा जा रहा है कि जो पुराने बंगलादेशी मजदूर और घर के नौकर चाकर के रूप में काम कर रहे हैं उन्हें जल्द देश से बाहर निकाल दिया जाए। यदि कुछ बंगलादेशी स्थायी नौकरी में हैं तब भी उन्हें यहां से चले जाने के लिए कह दिया जाए। वास्तविकता यह है कि अरब अमीरात में काम करने वाले मजदूरों में 50 प्रतिशत बंगलादेशी हैं। बंगलादेश के श्रम मंत्री खंडीगार मुशर्रफ ने अपना बयान जारी करते हुए कहा है कि बंगलादेशी मजदूर बड़ी तादाद में ढाका लौट रहे हैं। जिन मजदूरों के अनुबंध हैं उन्हें घर चले जाने की हिदायत दे दी  गई है। अरब अमीरात ने अपनी नीति स्पष्ट करते हुए कहा कि 31 दिसंबर, 2012 तक अमीरात के देशों में कोई बंगलादेशी नहीं रहेगा। सरकार इस बात पर भी तैयार है कि किसी कारणवश उन्हें हर्जाना देना पड़े तो इसके लिए भी वह तैयार है। मजदूरों के निष्कासन से बंगलादेश सरकार को 12 अरब 85 करोड़ डालर का घाटा उठाना पड़ेगा। बंगलादेश की अर्थव्यवस्था के लिए यह बड़ी चुनौती होगी। उक्त धनराशि देश की घरेलू पैदावार का 12 प्रतिशत बताई जाती है। दुनिया में सबसे सस्ता मजदूर बंगलादेशी है। लेकिन अब विश्व स्तर पर बंगलादेशियों से अनेक सरकारें सतर्क हो गई हैं। अरब अमीरात सहित अन्य देशों में बंगलादेशी पुरुष और महिलाएं ही केवल काम पर नहीं जाती हैं, बल्कि उनके छोटे-छोटे बच्चों को भी बहला-फुसला कर विदेशों में भेज दिया जाता है।

पिछले दिनों बच्चों को काम के बहाने जिस तरह से उनका शोषण किया जाता है उस संबंध में राष्ट्र संघ ने एक आयोग बनाकर इसकी छानबीन की थी। लेकिन बच्चों को भिजवाने पर प्रतिबंध लगाने के मामले में अनेक देश सहमत नहीं थे। पाकिस्तान सहित कुछ मुस्लिम देशों ने इसका विरोध किया। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण अरब देशों में इन बच्चों को ऊंट की दौड़ में प्रयोग किया जाता है। अरबी अपने मनोरंजन के लिए ऊंट दौड़ आयोजित करते हैं। ऊंट की नंगी पीठ पर बच्चों को बांध दिया जाता है। दौड़ के समय बच्चे घबराकर जोर जोर से रोने लगते हैं। रेस के रसियाओं का कहना है कि बच्चों के रोने की आवाज से ऊंट तेजी से भागता है और प्रतिस्पर्धा में आगे निकल जाने के लिए सब कुछ कर गुजरता है। नंगी पीठ पर बच्चे लहूलुहान हो जाते हैं। उस रेस में आधे से अधिक बच्चे दम तोड़ देते हैं। राष्ट्र संघ ने कई बार अपनी रपट में इस पर आपत्ति प्रकट की है लेकिन बंगलादेश की सरकार केवल दीनार और रियाल के चक्कर में इस पर कोई ध्यान नहीं देती है

आतंकवादियों से साठगांठ

लेकिन इस समय मजदूरों पर प्रतिबंध लगाने का कारण दूसरा है। आतंकवादियों को बड़ी तादाद में मानव बल की आवश्यकता होती है। वे बंगलादेशियों को बहला-फुसला कर अपने लश्कर और अन्य संगठनों में भर्ती कर लेते हैं। आतंकवादी पैसा पाने के लिए खाड़ी के देशों को दूध देने वाली गाय की उपमा देते हैं। उनका मानना है कि एक तो इस सुनसान प्रदेश में कोई पूछने वाला नहीं है। दूसरी बात यहां काम कराने वालों से उन्हें अच्छा पैसा मिल जाता है। अरब अमीरात के देशों को पता लगा है कि आतंकवादी यहां भी अपने पांव पसार रहे हैं। इस काम में वे अधिकतम उपयोग बंगलादेशियों का कर रहे हैं। इसलिए खाड़ी के देशों को अमरीका सहित अनेक देशों ने सावधान किया है। पिछले दिनों जब राष्ट्र संघ में बच्चे और युद्ध इस विषय पर चर्चा हुई तो अनेक देश कन्नी काट गए। उक्त प्रस्ताव हान केमून के विशेष प्रतिनिधि लेली जेरोगी के प्रयासों से पेश किया गया था। पाठकों को बता दें कि हाल ही में लेली ने राधिका कुमार स्वामी का स्थान लिया है। बच्चों को आतंकवादी बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं। उन्हें मानव बम के रूप में उपयोग में लाते हैं। इस रपट में राष्ट्रसंघ ने यह स्वीकार किया है कि बच्चों के उपयोग से ही आतंकवादियों की बांहें फड़कने लगती हैं। बंगलादेशी और अन्य गरीब देशों के बच्चों का यह शोषण मानवता पर कलंक है। लेकिन स्वयं आतंकवादी और उनके समर्थक देश इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं।

असली समस्या

सबसे अधिक अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले लोग भी बंगलादेशी हैं। वे येन-केन प्रकारेण इन देशों में पहुंच जाते हैं। तेज रफ्तार नावें तो इसका स्थायी साधन हैं ही, अन्य माल ढोने वाले जहाजों में भी बोरियों में बंदकर बंगलादेशियों को चढ़ा दिया जाता है। वहां उनका एजेंट होता है। एक बार भीतर पहुंच गए कि फिर उन्हें येन केन प्रकारेण बाहर निकाल लिया जाता है। विश्व में सबसे अधिक अवैध नागरिक किसी देश के हैं तो वे बंगलादेश के हैं। एक बंगलादेशी किसी अन्य देश में पहुंचकर अपने अन्य परिचितों को वहां आमंत्रित कर लेता है। बंगलादेशियों का म्यांमार से झगड़ा होने का यह भी एक कारण है। नेपाल और भारतीय सीमा तो उनके लिए स्वर्ग समान है। वहां से हर दिन बंगलादेशियों के टोले विदेश पहुंच जाते हैं। इंदिरा गांधी और मुजीबुर्रहमान के बीच बंगलादेशियों की नागरिकता संबंधी जो फैसला हुआ था उसे आधार बनाकर बड़ी संख्या में बंगलादेशियों की भारत में घुसपैठ होती रहती है। सच बात तो यह है कि बंगलादेश की लगभग 1/3 जनसंख्या भारत में प्रवेश कर चुकी है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि इस संख्या को पुन: बंगलादेश भेजना संभव नहीं है। यदि भारत सरकार इस मामले में इतनी अक्षम है तो फिर बंगलादेश से यह क्यों मांग नहीं करती है कि उसके नागरिकों को बसाने के लिए बंगलादेश सरकार को अपनी धरती का 1/3 भाग भी भारत को दे देना चाहिए। लेकिन सरकार के पास न तो इतना साहस है और न ही आत्मविश्वास कि वह इन घुसपैठियों को वापस रवाना करवा सके। असम की असली समस्या ही इन बंगलादेशी घुसपैठियों की है। इससे भारत की भूमि पर जो असंतुलन पैदा हो गया है उससे भविष्य में देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का जटिल सवाल उठने वाला है। भारत सरकार ने अब तक कभी संसद को यह जानकारी नहीं दी कि बंगलादेश से आए कितने अवैध नागरिकों को देश से बाहर निकालकर बंगलादेश भिजवा दिया गया है। बंगलादेशियों की घुसपैठ के मामले में सरकार के पास सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सेकुलर राजनीतिक दल उनका वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझते हैं। इसलिए भारत में बंगलादेशियों की घुसपैठ पूर्णतया राजनीति से प्रेरित है।

चीन और बंगलादेशी

खाड़ी की सरकारें तो इस मामले में सतर्क हो गई हैं लेकिन जिन देशों में बंगलादेशी घुसपैठ कर रहे हैं वहां लगातार समस्याएं उठती जा रही हैं। सऊदी अरब ने एक बार मुहिम चलाकर इन्हें बाहर निकाला था। दस साल पहले 8 हजार बंगलादेशियों को बाहर निकाल दिया गया था। कुछ देशों को यह भी खतरा है कि उनके शत्रु देश की सेना में यदि बंगलादेशी घुस जाते हैं तो उनकी ताकत बढ़ सकती है। चीन में तो बंगलादेशी को देखते ही जेल में भिजवा दिया जाता है। वह वहां से जीवित निकलता है या नहीं, यह खोज का विषय है। हांगकांग टाइम्स ने सिक्यांग में गड़बड़ करने वाले 180 बंगलादेशियों की सूची प्रकाशित की थी। बंगलादेशी कितनी बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं यह अमीरात के देशों के उठाए कदम से भली प्रकार समझा जा सकता है। अरब अमीरात के इस निर्णय से यह सिद्ध हो जाता है कि कोई भी देश हो उसे मजहब से अधिक अपनी धरती का ही विचार करना पड़ता है। पर भारत में तो बंगलादेशियों को बसाया जा रहा है।

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