Thursday, February 7, 2013

Fwd: Hindi Bhashya from M G Vaidya


हिंदू आतंकवाद

'हिंदू आतंकवाद', 'भगवा आतंकवाद' जैसे गैरजिम्मेदाराना शब्दों का प्रयोग करने के लिए गृहमंत्री शिंदे का निषेध करने वाला लेख मैंने गत भाष्य में ही लिखा था. फिर उस विषय की चर्चा का वैसे कोई प्रयोजन नहीं था. लेकिन, वह लेख लिखने के बाद उसी विषय पर दो बहुत ही अच्छे लेख मैंने पढ़े. उन लेखों का भी मेरे वाचकों को परिचय हो, इस हेतु से उन लेखों का स्वैर अनुवाद यहॉं प्रस्तुत कर रहा हूँ.

 

एस. गुरुमूर्ति का लेख

पहला लेख है एस. गुरुमूर्ति का. वह चेन्नई से प्रकाशित होने वाले 'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के २४ जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है. विषय मुख्यत: भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली 'समझौता एक्सप्रेस'में, भारत में पानिपत में हुए बम विस्फोट और उसके लिए बहुत देर बाद सरकारी जॉंच यंत्रणा ने तथाकथित हिंदू आतंकवादियों को धर दबोचने के बारे में है. वह इस प्रकार है -

 

दाऊद इब्राहिम की मदद

''२० जनवरी १३ को, जयपुर में कॉंग्रेस के तथाकथित चिंतन शिबिर में केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने समझौता एक्सप्रेस, मक्का मसजिद और मालेगॉंव में हुए बम विस्फोट के लिए रा. स्व. संघ और भाजपा को जिम्मेदार बताया था. शिंदे का वक्तव्य प्रसिद्ध होने के दूसरे ही दिन लष्कर-ए-तोयबा का नेता हफीज सईद ने संघ पर पाबंदी लगाने की मांग की थी. अत: सईद की इस मॉंग के लिए शिंदे ही गवाह साबित होते है. अब हम इस बम विस्फोट के सबूतों पर विचार करेंगे.''

''राष्ट्र संघ की सुरक्षा समिति ने २९ जून २००९ को पारित किए प्रस्ताव में कहा है कि, '२००७ के फरवरी माह में समझौता एक्सप्रेस में जो बम विस्फोट हुआ उसके लिए लष्कर-ए-तोयबा का मुख्य समन्वयक कासमानी अरिफ जिम्मेदार है.' इस कासमानी को दाऊद इब्राहिम ने पैसा दिया था. दाऊद ने 'अल् कायदा' इस आतंकी संगठन को भी पैसों की मदद की थी. इस मदद के बदले समझौता एक्सप्रेस पर हमला करने के लिए 'अल् कायदा'ने आतंकी उपलब्ध कराए थे. सुरक्षा समिति का यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ की साईट पर उपलब्ध है. दो दिन बाद मतलब दि. १ जुलाई २००९ को अमेरिका के (युएसए) कोषागार विभाग (ट्रेझरी डिपार्टमेंट) ने एक सार्वजनिक पत्रक में कहा है कि, अरिफ कासमानी ने बम विस्फोट के लिए लष्कर-ए-तोयबा के साथ सहयोग किया. अमेरिका ने अरिफ कासमानी सहित कुल चार पाकिस्तानी नागरिकों के नाम भी घोषित किए है. अमेरिका सरकार के इस आदेश का क्रमांक १३२२४ है और वह भी सरकारी साईट पर उपलब्ध है.''

 

पाकिस्तान की कबुली

''राष्ट्र संघ और अमेरिका ने लष्कर-ए-तोयबा और कासमानी के विरुद्ध कारवाई घोषित करने के उपरान्त, छ: माह बाद पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने, पाकिस्तान के आतंकवादी, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में शामिल थे, यह मान्य किया. लेकिन उसे एक परन्तुक (रायडर) जोड़ा. वह इस प्रकार कि, लेफटनंट कर्नल पुराहित ने पाकिस्तान में रहने वाले आतंकवादियों को इसके लिए सुपारी दी थी. (संदर्भ - 'इंडिया टुडे' ऑन लाईन, २४ - ०१ - २०१०)''

''राष्ट्र संघ या अमेरिका या पाकिस्तान के गृहमंत्री की बात छोड़ दें. अमेरिका में इस मामले की जिस एक अलग यंत्रणा ने जॉंच की, उसमें से और कुछ जानकारी सामने आई है. करीब १० माह बाद सेबास्टियन रोटेल्ला इस खोजी पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में डेव्हिड कोलमन हेडली का भी हाथ था. यह उसकी तीसरी बीबी फैजा आऊतल्लाह ने अपने कबुलनामें में बताया है. रोटेल्ला के रिपोर्ट का शीर्षक है, '२००८ में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बारे में अमेरिकी सरकारी यंत्रणा को चेतावनी दी गई थी' रोटेल्ला आगे कहते है कि, 'मुझे इस हमले में लपेटा गया है, ऐसा फैजा ने कहा है' (वॉशिंग्टन पोस्ट - ०५ - ११ - २०१०) २००८ के अप्रेल माह में लिखी अपनी जॉंच के रिपोर्ट के अगले भाग में रोटेल्ला कहते है कि, ''फैजा, इस्लामाबाद के (अमेरिकी) दूतावास में गई थी और २००८ में मुंबई में विस्फोट होगे, ऐसी सूचना भी उसने दी थी.''    

 

सीमी का भी सहभाग

''सन् २००७ में, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के मामले की जॉंच के चलते समय ही, इस हमले में 'सीमी' (स्टुडण्ट्स इस्लामिक मुव्हमेंट ऑफ इंडिया) संस्था का भी सहभाग था, ऐसे सबूत मिले है. 'इंडिया टुडे' के १९ - ०९ - २००८ के अंक के समाचार का शीर्षक था 'मुंबई में रेलगाडी में हुए विस्फोट और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान का हाथ : नागोरी' उस समाचार में लष्कर-ए-तोयबा और पाकिस्तान के सहभाग का पूरा ब्यौरा दिया गया है. 'सीमी' के नेताओं की जो नार्को जॉंच की गई, उससे यह स्पष्ट होता है. इंडिया टुडे के समाचार के अनुसार, सीमी के महासचिव सफदर नागोरी, उसका भाई कमरुद्दीन नागोरी और अमील परवेज की यह नार्को जॉंच बंगलोर में अप्रेल २००७ में की गई थी. इस जॉंच के निष्कर्ष 'इंडिया टुडे' के पास उपलब्ध है. उससे स्पष्ट होता है कि, भारत के सीमी कार्यकर्ताओं ने, सीमा पार पाकिस्तानियों की सहायता से, यह बम विस्फोट किए थे. एहतेशाम और नासीर यह 'सीमी' के उन कार्यकर्ताओं के नाम है. उनके साथ कमरुद्दीन नागोरी भी था. पाकिस्तानियों ने, खाली सूटकेस इंदौर के कटारिया मार्केट से खरीदी थी. इस जॉंच में यह भी स्पष्ट हुआ कि, उस सूटकेस में पॉंच बम रखे गए थे और टायमर स्विच से उनका विस्फोट किया गया.''

 

एटीएस का झूठ

''यह सबूत सामने होते हुए भी महाराष्ट्र का पुलीस विभाग, इस दिशा में आगे क्यों नहीं बढ़ रहा. ऐसा प्रश्‍न स्वाभाविक ही निर्माण होता है. ऐसा दिखता है कि, महाराष्ट्र पुलीस विभाग के कुछ लोगों को, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का मामला कैसे भी मालेगॉंव बम विस्फोट से जोड़ना था. महाराष्ट्र के दहशतवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने, अपने वकील के मार्फत, विशेष न्यायाधीश को बताया कि, मालेगॉंव बम विस्फोट मामले के आरोपी कर्नल पुरोहित ने ही समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उपलब्ध कराया था. लेकिन 'नॅशनल सेक्युरिटी गार्ड' इस केन्द्र सरकार की यंत्रणा ने बताया कि, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग नहीं किया गया था. पोटॅशियम क्लोरेट और सल्फर इन रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया गया था. तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटील ने भी इस विधान की पुष्टी की थी. मजे की बात तो यह है कि, उसी दिन मतलब १७-११-२००८ को दहशतवाद विरोधी दस्ते के वकील ने भी अपना पहले का बयान वापस लिया था. लेकिन जो हानि होनी थी वह तो हो चुकी थी. पाकिस्तान ने घोषित किया की, सचिव स्तर की बैठक में समझौता एक्सप्रेस पर हुए हमले में कर्नल पुरोहित के सहभाग का मुद्दा उपस्थित किया जाएगा. अंत में २० जनवरी २००९ को दशतवाद विरोधी दस्ते ने अधिकृत रूप में मान्य किया कि, समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स उपलब्ध नहीं कराया था.  इस प्रकार समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट का केन्द्र, लष्कर-ए-तोयबा और 'सीमी' से कर्नल पुरोहित और उसके द्वारा भगवे रंग की ओर मोडा गया. क्या महाराष्ट्र पुलीस यंत्रणा पर दाऊद इब्राहिमब का प्रभाव है? इसकी जॉंच होनी चाहिए.''

प्रश्‍न यह है कि, कौन सच बता रहा है? राष्ट्र संघ, अमेरिका, या शिंदे साहब? शिंदे साहब से उत्तर की अपेक्षा है.

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फ्रॅन्कॉई ग्वाटिये का लेख

दूसरा लेख है विदेशी पत्रकार फ्रॅन्कॉई ग्वाटिये (Francois Gautier) का. उनके लेख का शीर्षक है ''हिंदू आतंकवाद नाम की कोई बात है?'' (Is There Such a Thing As Hindu Terrorism)  उनके लेख को भी शिंदे के वक्तव्य का संदर्भ है. वे लिखते है -

 

''मैं विदेशी संवाददाताओं में अपवादभूत संवाददाता हूँ. मेरा हिंदूओं पर प्रेम है. मैं जन्म से फ्रेंच हूँ. कॅथॉलिक हूँ. मतलब अहिंदू हूँ. मेरे अपने मतों के लिए मुझे ही श्रेय दिया जाना चाहिए. कारण, वह मत मुझे मेरे माता-पिता से नहीं मिले. मेरी शिक्षा या वंशपरंपरा से भी नहीं आए. १९८० से 'ला जर्नल दि जिनेव्हा' और 'ला फिगॅरो' माचार पत्रों के लिए, दक्षिण आशिया के घटनाक्रमों का विश्‍लेषण करते समय मुझे जो दिखा और अनुभव हुआ, उससे मेरे यह मत बने है. धीरे-धीरे मुझे अनुभव हुआ कि, इस देश की विशेषताएँ हिंदू जीवनमूल्यों  (ethos) और हिंदूत्व के आधारभूत सच्ची आध्यात्मिकता में है.''

 

हिंदूओं की विशेषता

''लाखों ग्रामीणों में यह सादी, अंगभूत आध्यात्मिकता मैनें अनुभव की है. वह आपकी विविधता का स्वीकार करती है. फिर आप ईसाई हो या मुसलमान, अरब हो या ज्यू, फ्रेंच हो या चिनी. इस हिंदुत्व के कारण ही, भारतीय ईसाई फ्रेंच ईसाई से अलग होता है या भारतीय मुसलमान, सौदी मुसलमान से अलग लगता है. मैंने देखा है कि, हिंदूओं की ऐसी श्रद्धा है कि, ईश्‍वर अलग-अलग समय पर, अलग-अलग रूपों में, अलग-अलग नाम धारण कर सकता है. इस धारणा के कारण ही, हिंदूओं ने, कम से कम गत साडेतीन हजार वर्षों में, किसी देश पर फौजी हमला नहीं किया; उसी प्रकार, शक्ति या लालच से अपना धर्म किसी पर नहीं लादा.''

 

वेदनादायी तुलना

''ऐसा होते हुए भी, गुस्से में अपवादस्वरूप ईसाई चर्च जलाने वाले हिंदूओं की तुलना, निरपराध लोगों का कत्ल करने वाली 'सीमी' जैसी संस्था के साथ की जाती है, तब मुझे पीडा होती है. क्रोधावेश में चर्च पर हमले हुए, लेकिन किसी की हत्या नहीं हुई, यह भी ध्यान में रखना चाहिए.''

''बाबरी मसजिद ध्वंस करना निंदनीय होने पर भी, उस मामले में, किसी मुसलमान की हत्या नहीं हुई थी. इसकी, बाबरी का बदला के लेने के लिए १९९३ में मुंबई में जो बम विस्फोट हुए, उससे जरा तुलना करें. मुंबई में हुए बम विस्फोट में सैकड़ों लोग मारे गए थे.''

 

हिंदू ही आघात-लक्ष्य

''मुझे यहॉं, उस तथाकथित हिंदू दहशतवाद के बारे में बताना ही चाहिए. अरबस्थान से आए पहले आक्रमण से ही, हिंदू ही आघात-लक्ष्य रहे हैं. तैमूरलंग ने सन् १३९९ में, एक ही दिन, एक लाख हिंदूओं का कत्ल किया था. पोर्तुगीजों ने इन्क्विझिशन के नाम पर, गोवा में, सैकड़ों ब्राह्मणों को सुली पर चढ़ा दिया था. आज भी हिंदूओं का उत्पीडन समाप्त नहीं हुआ है. कश्मीर के दस लाख हिंदू उसके भोग भोग रहे है. आज कुछ सौ की संख्या में ही हिंदू वहॉं बचे है. अन्य ने, दहशत से स्वयं को बचाने के लिए वहॉं से पलायन किया है. केवल गत चार वर्षों की अवधि में, संपूर्ण भारत में हुए अनेक बम विस्फोटों में सैकड़ों निरपराध हिंदू मारे गए है.''

 

भेदभाव का बर्ताव

''इस देश में हिंदू बहुसंख्य है. लेकिन उनका मजाक उडाया जाता है. उन्हें मूलभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं होती. अमरनाथ यात्रा का उदाहरण मेरे सामने है. सरकार हिंदूओं की है, फिर भी यह हो रहा है. और हज यात्रा को पुरस्कृत किया जाता है.''

''हिंदू वनवासीयों को आर्थिक लालच या आर्थिक फन्दें में फँसाकर ईसाई बनाया जाता है. उनमें के एक ८४ वर्षीय साधू और एक साध्वी की नृशंस हत्या की जाती है. लेकिन, कभी-कभी वर्षानुवर्ष भेड-बकरियों की तरह कत्ल सहने वाले हिंदू, जिन्हें महात्मा गांधी ने कायर कहा था, ताकत के साथ उठ खड़े होते है. ऐसा ही गुजरात में हुआ था. जम्मू, कंधमाल, मंगलोर, मालेगॉंव या अजमेर में हुआ था.''

 

आँकड़े बताओ

''अन्यत्र भी ऐसी घटनाएँ हो सकती है. हमने यह ध्यान में लेना चाहिए कि, यह घटनाएँ सियासी नेतृत्व ने नहीं कराई. वह उत्स्फूर्त उद्रेक होता है. दुनिया की जनसंख्या में १०० करोड़ हिंदू है. दुनिया के कानूनों का पालन करने वाले और उद्योगों में सफल लोगों में उनकी गिनति होती है. क्या हम उन्हें आतंकवादी कहेंगे? १९४७ से मुसलमानों की ओर से कितने हिंदू मारे गए और हिंदूओं की ओर से कितने मुसलमान मारे गए, इसके आँकड़े अन्य कोई प्रस्तुत करे या न करे कम से कम भाजप ने यह अवश्य करना चाहिए. वे आँकड़े ही सच क्या है यह बताएगे.''

 

सुशील कुमार जी, आपके पास है इसका जबाब? शायद नहीं ही होगा; और रहा तो भी आप वह नहीं देगे. कारण वे हिंदू है!

 

 

-मा. गो. वैद्य 

अनुवाद : विकास कुलकर्णी

babujivaidya@gmail.com

 

 

 

 

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