आतंकवाद से मुकाबला और राज्यों के अहंकार
हमारे देश में आतंकवाद की भीषण समस्या है, आतंकवाद हमारे देश पर का एक महान संकट है, इस बारे में हमारे देश में दो मत होगे ऐसा नहीं लगता. अपवाद करना ही होगा, तो वह, आतंकवादी कारवाईंयॉं करने वाले दो प्रकार के समूहों का करना होगा. एक समूह जिहादी आतंकवादियों को है, तो दूसरा माओवादी आतंकवादियों का है. हर समूह में अनेक गुट है, उनके नाम भी भिन्न-भिन्न है. पहले जिहादी आतंकवादियों में लष्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिद्दीन, सीमी आदि नाम धारण करने वाले गुट है, तो दूसरे में माओवादी, नक्सली, पीपल्स वॉर ग्रुप आदि नाम के गुट है. इन दोनों गुटों का परस्पर सहकार्य नहीं है, लेकिन दोनों के उद्देश्य समान है. वह है हिंसा का आधार लेकर भारत को कमजोर बनाना और अपनी सत्ता स्थापन करना. पहले को इस्लामी राज चाहिए, तो दूसरे को मार्क्सवादी.
संपूर्ण भारत ही आघातलक्ष्य
इन आतंकवादी गुटों की हिंसक कारवाईंयॉं किसी एक राज्य तक मर्यादित नहीं. राजधानी दिल्ली, पुणे, मुंबई, बंगलोर, हैद्राबाद इन स्थानों पर आतंकवादियों ने किए बम विस्फोट अब सर्वपरिचित है. उन्होंने सैकड़ों निरपराध लोगों की हत्या की है. इन सब आघातों का लक्ष्य और भक्ष्य केवल वे शहर नहीं थे, संपूर्ण भारत को बरबाद करना, यह उनका उद्दिष्ट था. वामपंथी विचारधारा के आतंकवादी वनवासी क्षेत्र में सक्रिय है. बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र इन राज्यों में उनकी कारवाईंयॉं शुरु रहती है. पहले गुट का आघातलक्ष्य मुख्यत: नागरी लोग और संस्था है, तो दूसरे गुट का आघातलक्ष्य पुलीस और अर्धसैनिक दल है.
इन आतंकवादियों की हिंसक कारवाईयॉं अलग-अलग राज्यों में होती रहती है, फिर भी वह समस्या उन-उन राज्यों की समस्या नहीं है; और इस कारण इन हिंसक चुनौतियों का सामना कर, उन्हें समाप्त करना यह केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है. इस दृष्टि से केन्द्र सरकार ने कुछ कदम उठाए भी है. लेकिन हमारा, मतलब हमारे देश का दुर्भाग्य यह कि, केन्द्र सरकार के उस संदर्भ के उपक्रमों को और नीतिनिर्धारण को राज्यों का मन से समर्थन नहीं मिलता. देश की सुरक्षा की अपेक्षा उन्हें अपने राज्य के स्वायत्तता की अधिक चिंता है. वे यह भूल ही जाते है कि, आखिर देश है, इसलिए तो उनका अस्तित्व है, उनका घटकत्व है. संपूर्ण देश को स्वातंत्र्य मिला इसलिए तो वे भी स्वातंत्र्य भोग रहे है.
नक्षली हिंसाचार के संबंध में कहे तो वह समस्या अनेकसंलग्न राज्यों में है. एक राज्य में हिंसाचार कर नक्षली अन्य राज्यों में भाग जाते है. इसलिए सब राज्यों को अपने कक्षा में लेने वाली, उनके बंदोबस्त की व्यवस्था आवश्यक है. यह आवश्यकता केन्द्र सरकार ही पूर्ण कर सकती है.
संपूर्ण देश की समस्या
इस संदर्भ में केन्द्र सरकार ने कुछ कदम उठाए भी है. एक नॅशनल इन्व्हेस्टिगेशन एजन्सी की (एनआयए) मतलब राष्ट्रीय अपराध-अन्वेषण यंत्रणा की निर्मिति की है. राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में इस यंत्रणा को कुछ विशेष अधिकार है. राज्यों का भी पुलीस दल होता है. कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी उनकी है. वह किसी ने छीनी नहीं. लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न आने पर राज्य के पुलीस विभाग के अधिकार को परे रखने का अधिकार एनआयए को है. इसमें गलत क्या है? क्या राज्य का पुलीस विभाग इतना सक्षम है कि, स्वयं अपने बुते पर आतंकी हमलों का बंदोबस्त कर सकता है? मुंबई पर हुए हमले महाराष्ट्र की पुलीस क्यों रोक नहीं पाई? उस विभाग से संलग्न खुफिया विभाग क्यों कमजोर साबित हुआ? अभी हाल ही में हैदराबाद में बम विस्फोट हुए. अनेक निरपराधी मारे गए. आतंकवादियों ने बताया कि, अफजल गुरु को, जिसने हमारे संसद भवन पर हमला किया, फॉंसी पर लटकाया गया और अजमल कसाब जिसे मुंबई के बम विस्फोट में शामिल होने के कारण फॉंसी पर लटकाया गया, उसका बदला लेने के लिए हमने यह हमले किए थे. क्या आंध्र प्रदेश की सरकार यह हमले रोक पाई? सब जिहादी संगठनों की जड़ें पाकिस्थान में है. वहॉं से इन संगठनों को प्रेरणा और शक्ति मिलती है. क्या उस पाकिस्तान का मुकाबला कोई एक राज्य अपने बुते पर कर पाएगा? वस्तुत: यह किसी भी एक राज्य की जिम्मेदारी नहीं. वह जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है. स्वयं प्रधानमंत्री ने ही यह जिहादी 'टेरर मशीन' पाकिस्तान में है और पाकिस्तान उसे नियंत्रण में रखें, ऐसा वक्तव्य किया है. हाल ही में पाकिस्तान की संसद ने प्रस्ताव पारित कर अफजल गुरु को फॉंसी पर लटकाने के लिए भारत की निंदा की है. एक प्रकार से पाकिस्तान ने स्वयं ही यह स्पष्ट किया है कि, भारत में की जिहादी आतंकवादी कारवाईयों को उसका समर्थन है.
हमारा राज्य 'फेडरल' नहीं
इस आतंकवाद को नियंत्रण में लाने के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक आतंकवाद विरोधी केन्द्र (नॅशनल काऊंटर टेररिझम् सेंटर -एनसीटीसी) स्थापन करना तय किया है. इस केन्द्र को, मतलब 'एनसीटीसी' को अपराध की खोज करने, अपराधियों की जॉंच करने, उन्हें गिरफ्तार करने, उनपर मुकद्दमें दायर करने के अधिकार देना संकल्पित है. इसमें क्या गलत है? अभी तक आतंकवाद विरोधी केन्द्र सक्रिय नहीं हुआ है. उसके सक्रिय होने की आवश्यकता है. लेकिन उसे अमल में लाने में राज्यों के अहंकार आडे आते है. कहा जाता है कि उनका आक्षेप है कि, इस केन्द्र के कारण राज्यों के अधिकार बाधित होंगे. उनका कहना है कि, हमारा संविधान फेडरल स्टेट (संघीय राज्य व्यवस्था) की गारंटी देता है. मतलब राज्य स्वायत्त है. उनके इस संविधान प्रदत्त स्वायत्तता पर इस एनसीटी के कारण आक्रमण होता है. मेरा प्रश्न है कि, हमारे संविधान में 'फेडरल' शब्द कहा है? अमेरिका के संयुक्त संस्थान के समान हमारे देश की राज्य रचना नहीं है. वहॉं एक-एक राज्य, अलग-अलग पद्धति से अस्तित्व में आए और बाद में उन्होंने एक होकर संघ बनाया. पहले वे स्वतंत्र थे और बाद में वे 'संयुक्त' मतलब 'युनाईटेड' हुए. हमारे देश के न नामाभिधान में, न रचना में, ऐसा युनाईटेड (संयुक्त) शब्द है. हमारे संविधान का शब्द 'युनियन' है. हमारे संविधान की पहली धारा बताती है कि, India that is bharat is a union of States. 'युनाईटेड' शब्द में बाद में आने वाली संयुक्तता है, तो 'युनियन' शब्द में अंगभूत एकत्व का भाव है.
एक देश, एक जन
व्यक्तिश: मेरा, 'युनियन ऑफ स्टेट्स' इस शब्दावली को ही विरोध है. इस शब्दावली में राज्य आधारभूत एकक (unit) कल्पित है. यह मूलत: गलत है. इस गलत शब्द के कारण ही स्वायत्तता के ख्वाब संजोने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. अमेरिका के संयुक्त संस्थान की तरह यह देश किसी प्रस्ताव या समझौते से नहीं बना है. वह मूलत: एक है. आज नहीं. २६ जनवरी १९५० से नहीं. अंग्रेजों का राज्य आने के बाद नहीं. या उनके पहले जो मुगल आए, तब से नहीं. बहुत प्राचीन समय से है. 'समुद्रपर्यन्ताया एकराट्' यह वेदों का वचन है. 'एकराट्' का अर्थ 'एक राष्ट्र' करे या 'एक राज्य' करे, वह वचन संपूर्ण देश के एकत्व का बोधक है. विष्णुपुराण में उसका विस्तार बताया है.
उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्|
वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र संतति: ॥
ऐसा वह वचन है. उसका अर्थ स्पष्ट है. समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो प्रदेश है, उसका नाम भारत है और वहॉं के लोग भारती (भारतीय) है. रघुवंश में राजाओं का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने 'आसमुद्रक्षितीशानाम्' विशेषण का प्रयोग किया है. उसका अर्थ 'समुद्र तक फैली भूमि के राजा' है. श्रीरामचंद्र के मन में भी यही भाव था. उसने जब वाली को मारा, तब वाली ने उससे प्रश्न किया कि, ''तूने मुझे क्यों मारा? मैंने तेरा क्या अपराध किया था?'' उस पर श्रीरामचंद्र का उत्तर प्रसिद्ध है. श्रीरामचंद्र कहते है,
''ईक्ष्वाकूणामियं भूमि: सशैलवनकानना |
मृगपक्षिमनुष्याणां निग्रहानुग्रहेष्वपि ॥
अर्थ है, यह पर्वत, वन, कानन सहित संपूर्ण भूमि इक्ष्वाकू की है; और अधर्माचरण करने वालों को दंड आणि धर्माचरण करने वालों पर अनुग्रह करने का हमें अधिकार है.
देश के एकत्व का भान
तात्पर्य यह कि, यह एक देश है. यहॉं के लोग एक है. यह एक राष्ट्र है. इस एक राष्ट्र में पहले अनेक राज्यसम्मिलित थे, यह सच है. पहले अनेक गणराज्य थे. लेकिन साम्राज्य भी थे. शत्रुओं के आक्रमण के बाद, उसे पुन: स्वतंत्र करने के प्रयास जिन्होंने किए, वे किसी भी प्रदेश के हो, उन्होंने संपूर्ण देश को स्वतंत्र करने का ही स्वप्न देखा. अन्यथा छत्रपति शिवाजी महाराज को अपनी जान जोखीम में डालकर दिल्ली जाने का क्या कारण था? या नादीरशाह दिल्ली में तबाही मचा रहा था, तब पहले बाजीराव ने, दिल्ली की रक्षा के लिए उत्तर की ओर कूच करने का क्या कारण था? नादीरशाह ने पुणे पर तो आक्रमण नहीं किया था! और अभी हाल ही में जिन क्रांतिकारकों ने अपने प्राण संकट में डालकर अंग्रेजों को खदेड़ने का प्रयास किया, वह किस प्रान्त को स्वतंत्र करने के लिए? उनका प्रयास तो संपूर्ण देश को ही स्वतंत्र करने का था. सुभाषचंद्र बोस ने आझाद हिंद सेना क्यों बनाई थी? केवल बंगाल स्वतंत्र करने के लिए? उनका नारा 'जय हिंद' था. 'जय संपूर्ण हिंदुस्थान' ऐसा उसका अर्थ है. कारण उनके सामने संपूर्ण हिंदुस्थान की स्वतंत्रता का ध्येय था. सन् १९४२ में क्रिप्श मिशन भारत में, स्वतंत्रता के संबंध में चर्चा करने हेतु आया था. उसने हर प्रान्त को स्वतंत्रता देने की योजना लाई थी. कॉंग्रेस ने उसे नकारा.
संविधान में संशोधन
मेरे मतानुसार संविधान के पहली धारा की भाषा, संविधान में संशोधन कर, बदलनी चाहिए. वह धारा इस प्रकार चाहिए - that is Bharat is one country, with one people and one culture i.e. one value system and therefore one nation, और यह करना असंभव नहीं. श्रीमती इंदिरा गांधी ने तो संविधान की प्रत्यक्ष आस्थापना में ही (प्रि-ऍम्बल) संशोधन किया था. जो शाश्वत और चिरस्थायी रहना चाहिए था, उसमें भी बदल किया था; और वह बदल आज कालबाह्य होने के बाद भी हम चला ले रहे है, फिर संविधान की पहली धारा की शब्दावली बदलने में क्या हर्ज है? अमेरिका के संयुक्त संस्थान (युएसए) के संविधान का अनुकरण करने के मोह में हमने यह शब्द स्वीकार किए होगे, ऐसा मुझे लगता है. हमारे देश का अतिप्राचीन इतिहास और वैचारिकता का विचार अग्रक्रम पर होता, तो यह अकारण भ्रम निर्माण करने वाली शब्दावली हम स्वीकारते ही नहीं. अमेरिका के इतिहास में भी, उस संयुक्त संस्थान की संयुक्तता कायम रखने के लिए अब्राहम लिंकन ने गृहयुद्ध मान्य किया, लेकिन दक्षिणी ओर के राज्यों को अलग नहीं होने दिया था, या घटना ध्यान में लेनी चाहिए.
तथापि, जो है, वह मान्य करने पर भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि, विभिन्न राज्य कारोबार की सुविधा के लिए है. अंग्रेज, जैसे-जैसे प्रदेश जितते गए, वैसे-वैसे राज्य बनाते गए. अंग्रेजों के जमाने में मुंबई विभाग में, मराठवाडा और विदर्भ को छोड़कर संपूर्ण महाराष्ट्र, सौराष्ट्र को छोड़कर संपूर्ण गुजरात, आज पाकिस्तान में अंतर्भूत सिंध प्रान्त और कर्नाटक के कुछ जिले इतना विशाल प्रदेश समाविष्ट था. इसी प्रकार बंगला में बिहार का भी अंतर्भाव था. स्वातंत्र्योत्तर समय में, उग्र आंदोलनों से ही सही, कुछ योग्य राज्यरचना हुई है. लेकिन वह संपूर्ण समाधानकारक नहीं है. बीस करोड़ का एक उत्तर प्रदेश राज्य और १०-१२ लाख का मिझोराम या पचास लाख जनसंख्या से कम के अनेक राज्य, यह व्यवस्था योग्य नहीं. पुन: एक बार राज्य पुनर्रचना आयोग बिठाकर, तीन करोड़ से अधिक या पचास लाख से कम जनसंख्या के राज्य नहीं रहेगे, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए.
लेकिन यह स्वतंत्र विषय है. मुख्य बात यह है कि हमारी राज्य व्यवस्था संघात्मक (फेडरल) नहीं चाहिए. वह एकात्मिक (unitory) चाहिए. युनिटरी का अर्थ विकेन्द्रीकरण को विरोध नहीं होता. राज्य कारोबार के घटक छोटे ही होगे. वे वैसे ही चाहिए. उन्हें अंतर्गत कारोबार की स्वतंत्रता रहेगी. हम विकेंद्रित व्यवस्था के पक्षधर है. लेकिन केन्द्र मजबूत होना ही चाहिए. विदेशी आक्रमण, परराष्ट्र संबंध, देश की सुरक्षा व्यवस्था, देशांतर्गत विद्रोह का बंदोबस्त - जैसे जिहादी और नक्सली आतंकवाद का बंदोबस्त, नदियों के पानी का बँटवारा, आदि और इस प्रकार के अन्य सार्वदेशीय विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही होने चाहिए. हमने जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार की है. इस कारण केन्द्र में सदा एक ही पार्टी की सत्ता रहेगी, यह संभव नहीं. अत: किस पार्टी की सत्ता है इसका विचार न कर, उस सत्ता को, देशहित की दृष्टि से, सब राज्यों का समर्थन रहना चाहिए. देशहित और हमारे राज्य के हित के बीच संघर्ष उत्पन्न हुआ, तो देशहित को ही प्राधान्य होना चाहिए. इसी दृष्टि से राज्यों ने, स्वायत्तता के भ्रम से निर्माण हुए अपने अहंकार और केन्द्र सरकार कीराजकीय पार्टी का विरोध परे रखकर, सब प्रकार का आतंकवाद जड़ से नष्ट करने के लिए एकजूटता के साथ केंद्रीय सत्ता के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहना चाहिए. उसने बनाई रणनीति और व्यवस्था को राज्यों ने मन से समर्थन देना चाहिए. यह एकजूट ही देश में के आतंकवादी हिंसाचार को जड़ से उखाड़ फेकेगी, और इस हिंसाचार को प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष मदद करने वाले पड़ोसी भारतद्वेषी राष्ट्रों के मन में धाक भी निर्माण करेगी.
- मा. गो. वैद्य
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