Tuesday, February 26, 2013

from M G Vaidya



 

संघ और सेवा

 

संघ मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. उसे समझ पाना जरा कठिन है. कारण, विद्यमान संस्थाओं के नमूने में वह नहीं बैठता. उसके नाम का हर शब्द महत्त्च का है. सप्रयोजन है. तथापि पहला 'राष्ट्रीय' शब्द उन सबमें सर्वाधिक महत्त्व का है, ऐसा मुझे लगता है. निरपेक्ष भाव से काम करने वाले अनेक कार्यकर्ता होते है. उन्हें हम 'स्वयंसेवक' कह सकते है. ऐसे कार्यकर्ताओं की कोई संस्था या समूह हो सकता है. उसे हम संघ कह सकते है. लेकिन उसमें का हर 'संघ' 'राष्ट्रीय' मतलब राष्ट्रव्यापी होगा ही ऐसा नहीं. और, 'राष्ट्र' इस शब्द के अर्थायाम के बारे में भी संभ्रम है. दुनिया में अन्यत्र वह नहीं भी होगा, लेकिन हमारे देश में है. हम सहज, लेकिन स्वाभिमान से, कह जाते है कि, १५ अगस्त १९४७ को हमारे नए राष्ट्र का जन्म हुआ. तो १४ अगस्त को हम क्या थे? 'राष्ट्र' नहीं थे? कुछ लोग 'राज्य' को ही राष्ट्र मानते है; तो अन्य कुछ, देश मतलब राष्ट्र समझते है. 'राज्य' और देश का 'राष्ट्र से' घनिष्ठ संबंध है. लेकिन 'राष्ट्र' उनसे अलग, उनसे व्यापक, उनसे श्रेष्ठ होता है. देश के बिना 'राष्ट्र' हो सकता है? रहा है. 'इस्रायल' यह उसका उदाहरण है. १८०० वर्ष उन्हें देश नहीं था. लेकिन हमारा देश और हम एक राष्ट्र है मतलब ज्यू राष्ट्र है. इसलिये दुनिया में कहीं भी रहने वाला ज्यू, वह हमारा बंधु है, यह वे भूले नहीं. मतलब अपना राष्ट्र वे भूले नहीं. फिर राष्ट्र मतलब क्या होता है? राष्ट्र मतलब लोग होते है. राष्ट्र मतलब समाज होता है. किन लोगों का राष्ट्र बनता है या लोगों का राष्ट्र बनने की क्या शर्ते है उसका विवेचन एक स्वतंत्र विषय है. आज वह प्रस्तुत नहीं. मुझे, यहॉं, यह अधोरेखित करना है कि, संघ के सामने सतत, अव्याहत, राष्ट्र का ही विचार होता है. मतलब अपने लोगों का, अपने समाज का, विचार होता है.   

 

सेवा कार्य का प्रारंभ

हमारे इस राष्ट्र में जो समाज रहता है, उस संपूर्ण समाज का जीवनस्तर समान नहीं है. कुछ लोग बहुत गरीब है. अशिक्षित है. नए आधुनिक जीवन से उनका परिचय ही नहीं. वहॉं आरोग्य नहीं. उसकी व्यवस्था भी नहीं. वे सब हमारे ही समाज के लोग है. मतलब वे हमारे राष्ट्र के घटक है. क्या उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि, हम भी इस राष्ट्र के घटक है. इस मौलिक बात का हमारे समाज बंधुओं को न ज्ञान था और न भान. संघ ने यह करा देने की ठानी; और संघसंस्थापक डॉ. के. ब. हेडगेवार जी के जन्म शताब्दी वर्ष मतलब १९८९ से संघ ने यह काम हाथ में लिया. संघ में 'सेवा विभाग' शुरु हुआ. इसके पूर्व संघ के स्वयंसेवक व्यक्तिगत स्तर पर सेवा कार्य करते थे. छत्तीसगढ़ में  जशपुर का वनवासी कल्याण आश्रम १९५२ में शुरु हुआ था. वह एक स्वयंसेवक ने ही शुरु किया था. बिलासपुर जिले के चांपा गॉंव में भारतीय कुष्ठ धाम, एक स्वयंसेवक ने ही शुरु किया था. संघ स्वयंसेवकों के व्यतिरिक्त अन्य महान् पुरुषों ने भी सेवा कार्य से लौकिक प्राप्त किया है. कुष्ठरोग निवारण के संदर्भ में अमरावती के शिवाजीराव पटवर्धन, वरोडा के बाबासाहब आमटे, वर्धा के सर्वोदय आश्रम के कार्यकर्ताओं के नाम सर्वत्र विख्यात है. मेरे मित्र शंकर पापळकर का सेवा प्रकल्प, मूक-बधिर और मतिमंद बालकों के संदर्भ में है. मुझे याद है कि पापळकर का अमरावती जिले के वझ्झर का प्रकल्प मैंने दो-तीन बार देखा है. विलक्षण कठिन है उनका काम. नाली में, कचरा कुंडी में, रेल प्लॅटफार्म पर छोड दिये अनाथ, अपंग नवजात शिशुओं के वे 'पिता' बने है. उस आश्रम में का दिल को छूने वाला एक प्रसंग आज भी मुझे याद है. मैं भोजन करने बैठा था, उन्होंने एक लड़के को मेरे सामने लाकर बिठाया, और मुझसे कहा, इसे एक निवाला अपने हाथ से खिलाईये. उस लड़के के दोनों हाथ नही थे. मैंने उसे एक निवाला खिलाया. मेरा दिल इतना भर आया था कि, मुझे आँसू रोकना बहुत कठिन हुआ. मुझे वह एक निवाला, हजार लोगों को अन्नदान करने के बराबर लगता है.

 

सेवा भारती का विस्तार

मुझे यह बताना है कि, यह सब वैयक्तिक प्रकल्प प्रशंसनीय है, फिर भी उनके विस्तार और क्षमता को भी स्वाभाविक मर्यादा है. संघ ने वर्ष १९८९ में, सेवा कार्य को अखिल भारतीय आयाम दिया. अपनी रचना में ही 'सेवा विभाग' नाम से एक नया विभाग निर्माण किया. उसके संचालन के लिए 'सेवा प्रमुख' पद की निर्मिति कर, एक श्रेष्ठ प्रचारक को उसका दायित्व सौपा. स्वयंसेवकों द्वारा व्यक्ति स्तर पर जो काम शुरु थे, वह सब इस विशाल छत्र के नीचे आए. जशपुर का वनवासी कल्याण आश्रम, 'अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम' बना. और केवल वनवासी क्षेत्र के ही नहीं, अन्य सब क्षेत्रों में के सेवा कार्यो के लिए एक व्यवस्था निर्माण की गई. वह व्यवस्था 'सेवा भारती' के नाम से जानी जाती है. इस सेवा भारती के कार्यकलापों का गत दो दशकों में इतना प्रचंड विस्तार हुआ है कि, डेढ लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे है.

 

एक अनुभव

हमारे समाज में जो दुर्बल, उपेक्षित और पीडित घटक है, उन पर 'सेवा भारती' ने अपना लक्ष्य केंद्रित किया है. उनमें के, जंगल में, पहाड़ों में, दरी-कंदराओं में रहने वालों के लड़के-लड़कियों के लिए एक शिक्षकी शालाए शुरु की. उस शाला का नाम है 'एकल विद्यालय'. गॉंव का ही एक युवक इस काम के लिए चुना जाता है. उसे थोड़ा प्रशिक्षण देते है और वह वहॉं के बच्चों को सिखाता है. संपूर्ण हिंदुस्थान में ऐसे एकल विद्यालय कितने होगे, इसकी मुझे कल्पना नहीं. लेकिन अकेले झारखंड आठ हजार एकल विद्यालय है. करीब १०-१२ वर्ष पहले की बात है. जशपुर जाते समय रास्ते में, झारखंड का एक एकल विद्यालय देखने का मौका मिला. हमारे लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. १० से १४ वर्ष आयु समूह के ५५ बच्चें और उनके पालक उपस्थित थे. उनमें २३ लड़कियॉं थी. उन्होंने गिनती सुनाई, पुस्तक पढ़कर दिखाए, गीत गाए. गॉंव में शाला थी. मतलब इमारत थी. शिक्षक भी नियुक्त थे. लेकिन विद्यार्थी ही नहीं थे. मैंने एक देहाती से पूछा, आपके बच्चें उस शाला में क्यों नहीं जाते? उसने कहा, वह शाला दोपहर १० से ४ बजे तक रहती है. उस समय हमारे बच्चें जानवर चराने ले जाते है. सरकारी यंत्रणा यह क्यों नहीं समझती कि, शाला का समय विद्यार्थींयों की सुविधा के अनुसार रखे. यह एकल विद्यालय को सूझ सकता है कारण उसे समाज को जोडना होता है. झारखंड के यह एकल विद्यालय सायंकाल ६॥ से ९ तक चलते है. गॉंव में बिजली नहीं थी. लालटेन के उजाले में शाला चलती थी; और शिक्षक है ९ वी अनुत्तीर्ण!

 

सेवा संगम

वनवासी क्षेत्र के एकल विद्यालय यह सेवा प्रकल्प का एक प्रकार है. ऐसे अनेक प्रकल्प-प्रकार है. जैसे अन्यत्र है, वैसे विदर्भ में भी है. २२ फरवरी २०१३ को इन सेवा प्रकल्प प्रकारों का एक संगम नागपुर में हुआ. रेशीमबाग में. इस संगम का नाम ही 'सेवा संगम' है. इस 'सेवा संगम' का उद्घाटन, नागपुर सुधार प्रन्यास के प्रमुख, श्री प्रवीण दराडे (आयएएस), उनकी पत्नी, आदिवासी विकास अतिरिक्त आयुक्त डॉ. पल्लवी दराडे और शंकर पापळकर ने किया. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जनकल्याण समिति द्वारा आयोजित था.

 

मुझे ऐसी जानकरी मिली है कि, विदर्भ में, करीब साडे पॉंच सौ सेवा प्रकल्प चल रहे है. अर्थात् एक संस्था के एक से अधिक प्रकल्प भी होगे ही. इनमें से करीब ८० संस्थाओं के प्रकल्पों की जानकारी देने वाली प्रदर्शनी भी वहॉं थी.

 

सेवा कार्य के आयाम

फिलहाल सेवा के कुल छ: आयाम निश्‍चित किए है. १) आरोग्य २) शिक्षा ३) संस्कार ४) स्वावलंबन ५) ग्राम विकास और ६) विपत्ति निवारण.

'आरोग्य' विभाग में, रक्तपेढी, नेत्रपेढी, मोबाईल रुग्णालय, नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण, परिचारिका प्रशिक्षण तथा आरोग्य- रक्षक-प्रशिक्षण, ऍम्बुलन्स और रुग्ण सेवा के लिए उपयुक्त वस्तुओं की उपलब्धता यह काम किए जाते है. नागपुर के समीप खापरी में विवेकानंद मेडिकल मिशन द्वारा चलाया जाने वाला अस्पताल, यह इस आरोग्य प्रकल्प का एक ठोस और बड़ा उदाहरण है. अब अमरावती में भी 'डॉ. हेडगेवार आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान' शुरु हो रहा है. रक्तपेढी, नागपुर के समान ही अमरावती, अकोला, यवतमाल और चंद्रपुर में भी है. सबका नाम 'डॉ. हेडगेवार रक्तपेढी' है.

 

२) शिक्षा : ऊपर एकल विद्यालय का उल्लेख किया ही है. लेकिन इसके अतिरिक्त, जिनकी ओर सामान्यत: कोई भूल से भी नहीं देखेगा, ऐसे बच्चों की शिक्षा और निवास की व्यवस्था करने वाले भी प्रकल्प है. नागपुर में विहिंप की ओर से, प्लॅटफार्म पर भटकने वाले और वही सोने वाले बच्चों के लिए शाला और छात्रावास चलाया जाता है. उसका नाम है 'प्लॅटफार्म ज्ञानमंदिर निवासी शाला'. फिलहाल इस शाला में ३५ बच्चें है. श्री राम इंगोले वेश्याओं के बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था देखते है, तो वडनेरकर पति-पत्नी, यवतमाल में पारधियों के बच्चों को शिक्षित कर रहे है. ये बच्चें अन्य सामान्य बच्चों की तरह शाला में जाते है. लेकिन रहते है छात्रावास में. लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग छात्रावास है. इसे चलाने वाली संस्था का नाम है 'दीनदयाल बहुउद्देशीय प्रसारक मंडल'. अमरावती की 'प्रज्ञाप्रबोधिनी' संस्था भी पारधी विकास सेवा का काम करती है. 'पारधी' मतलब अपराधियों की टोली, ऐसा समझ अंग्रेजों ने करा दिया था. स्वतंत्रता मिलने के बाद भी वह कायम था. संघ के कार्यकर्ताओं ने वह दूर किया. सोलापुर के समीप 'यमगरवाडी' का प्रकल्प संपूर्ण देश के लिए आदर्श है. छोटे स्तर पर ही सही यवतमाल का प्रकल्प भी अनुकरणीय है, यह मैं स्वयं के अनुभव से बता सकता हूँ. अमरावती का 'पारधी विकास सेवा कार्य', यमगरवाडी के प्रणेता गिरीश प्रभुणे की प्रेरणा से शुरु हुआ है. 'झोला वाचनालय' यह नई संकल्पना कार्यांवित है. इसमें थैले में पुस्तकें भरकर वाचकों को उनके घर जाकर जाती है. यवतमाल का दीनदयाल बहुउद्देशीय प्रसारक मंडल बच्चों को तंत्र शिक्षा के भी पाठ पढ़ाता है. यहॉं बच्चें च्यॉक बनाते है, अंबर चरखे पर सूत कातते है और वह खादी ग्रामोद्योग संस्था को देते है.

३) संस्कार : शाला की शिक्षा केवल किताबी होती है. परीक्षा उत्तीर्ण करना इतना ही उसका मर्यादित लक्ष्य होता है. लेकिन शिक्षा से व्यक्ति सुसंस्कृत बननी चाहिए. इस शालेय शिक्षा के साथ हर गॉंव में संघ शाखाओं द्वारा ग्रीष्म की छुट्टियों में मर्यादित कालावधि के लिए, संस्कार वर्ग चलाए जाते है. इन वर्गो में मुख्यत: झोपडपट्टी में के विद्यार्थीयों का सहभाग होता है. उन्हें कहानियॉं सुनाई जाती है. सुभाषित सिखाए जाते है. संस्कृत श्‍लोक सिखाए जाते है. २०१२ के ग्रीष्म में ऐसे संस्कार वर्गो की नागपुर की संख्या १२८ थी. इन वर्गो में श्‍लोक पठन, और कथाकथन की स्पर्धाए भी होती है.

४) स्वावलंबन : महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से सबल बनाने की दृष्टि से उनके बचत समूह बनाए जाते है. अनेक स्थानों पर सिलाई केंद्र शुरु कर सिलाई काम सिखाया जाता है. योग्य सलाह भी दी जाती है. नागपुर में एक 'मातृशक्ति कल्याण केंद्र' है. उसके द्वारा सेवाबस्ती में - बोलचाल की भाषा में कहे तो झोपडपट्टियों में, किसी मंदिर या घर का बाहरी हिस्सा किराए से लेकर बालवाडी चलाई जाती है. बस्ती की ८ वी या ९ वी पढ़ी युवती ही उस बालवाडी में शिक्षिका होती है. ग्रीष्म की छुट्टियों में उनके लिए १५ दिनों का प्रशिक्षण वर्ग लिया जाता है. इस केंद्र का एक, 'नारी सुरक्षा प्रकोष्ठ' भी है. यह प्रकोष्ठ निराधार, परित्यक्ता य संकटग्रस्त महिलाओं को आधार देने, उनके निवास और भोजन की व्यवस्था करने, तथा उन्हें कानूनी सहायता देने का काम करता है. इसी प्रकार यह संस्था दो गर्भसंस्कार केन्द्र भी चलाती है.

५) ग्राम विकास : विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का गंभीर प्रश्‍न है. हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने संसद में बताया कि, अप्रेल से जनवरी इन १० माह में विदर्भ में २२८ किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों के हित के लिए 'सेवा भारती' की ओर से भी काम चल रहा है. किसानों को जैविक खेती का महत्त्व समझाया जाता है. जलसंधारण की तकनीक समझाई जाती है. गौवंश रक्षा और गौपालन पर जोर दिया जाता है. गाय से मिलने वाले पंचगव्य से अनेक दवाईयॉं बनाने के प्रकल्प, नागपुर जिले में देवलापार और अकोला जिले में म्हैसपुर में है. वहॉं बनाई जाने वाली औषधियॉं मान्यता प्राप्त है और उनकी बिक्री भी बढ़ रही है. यवतमाल जिले की यवतमाल-पांढरकवडा इन दो तहसिलों में, दीनदयाल बहुउद्देशीय मंडल ने ६० गॉंव चुनकर उनमें के हर गॉंव के चुने हुए १५ - २० किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया है. तथा कपास तथा ज्वार के जैविक बीज भी उन्हें दिये है.    

६) विपत्ति निवारण :  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रवर्तित जनकल्याण समिति ने मतलब उसके कार्यकर्ताओं ने मतलब संघ के स्वयंसेवकों ने, बाढ़, आग, भूकंप जैसी दैवी आपत्तियों के समय, अपने प्राण खतरे में डालकर भी, आपत्पीडितों की सहायता की है. संघ के स्वयंसेवकों का यह एक स्वभाव ही बन गया है कि, संकट के समय अपने बंधुओं की रक्षा के लिए दौडकर जाना. कोई भी प्रान्त ले, सर्वत्र सबको यह एक ही अनुभव आता है.

 

अन्य कार्य

अनचाहे, छोड़ दिये अर्भकों को संभालने का काम जैसे शंकर पापळकर का प्रकल्प कर रहा है, वैसा ही काम यवतमाल के ज्येष्ठ संघ कार्यकर्ता स्वर्गीय बाबाजी दाते ने शुरु किया था. उनकी संस्था का नाम है 'मायापाखर'. फिलहाल इस 'मायापाखर'में ४ लड़के और १४ लड़कियॉं है. अनेक स्थानों पर स्वयंसेवक वृद्धाश्रम भी चला रहे है.

 

इस सेवाभारती के उपक्रम का उद्दिष्ट क्या है? उद्दिष्ट एक ही है कि सबको, हम समाज के एक घटक है, ऐसा लगे. उनके बीच समरसता उत्पन्न हो. सबको हम एक राष्ट्र के घटक है, इसलिए हम सब एकात्म है ऐसा अनुभव हो. इस प्रकार यह सही में राष्ट्रीय कार्य है. संघ के शिबिरों में प्रशिक्षण लेकर स्वयंसेवक इस मनेावृत्ति से अपने जीवन का विस्तार कर उसे वैसा ही बनाते है. हमारे गृहमंत्री को, माननीय शिंदे साहब को, इस निमित्त यह बताना है कि, संघ के शिबिर में एकात्म, एकरस, एकसंध राष्ट्रीयत्व की शिक्षा दी जाती है. आतंकवाद नहीं सिखाया जाता. कृपा कर पुन: अपनी जुबान न फिसलने दे और किसी संकुचित सियासी स्वार्थ के लिए बेलगाम वचनों से उसे गंदी न करे.  

 

- मा. गो. वैद्य

(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

babujivaidya@gmail.com

                            

                     

 

Friday, February 22, 2013

Fwd: 30 MILLION PARTICIPATE IN THE SURYA NAMASKAR YAJNA IN INDIA



30 MILLION PARTICIPATE IN THE SURYA NAMASKAR YAJNA IN INDIA
 

From: TEJMANI@aol.com
To: guyanese@yahoogroups.com
Sent: 2/21/2013 6:23:20 P.M. Eastern Standard Time
Subj: (no subject)
 
 
Namaste
As part of SV150 in India, 30 million participated in the Surya Namaskar Yajna on the Rathasaptami. Here is the inspirational report :
http://www.newsbharati.com/Encyc/2013/2/18/World-record-in-Mass-Surya-Namaskar-Three-crore-participants.aspx
World record in Mass Surya Namaskar : Three crore participants
Source: News Bharati English Date: 2/18/2013 10:15:20 PM

World record in Mass Surya Namaskar : Three crore participantsSurya_Namaskar_Delhi_Ramlila_2013_feb

New Delhi / Nagpur / Mumbai, February 18 : The nation which is the origin of Yoga, today set a world record in itself when more than three crore people performed 'Surya Namaskar' (Sun Salutations) at a time throughout the country. The event was organized by 'Vivekananda 150 Birth anniversary celebration committee' throughout the length & breadth of the country. According to the news agencies the participants consisted atleast two crore high school students. The 'Surya Namaskar Yagya' was organized at over 80 thousand places across the country.

At 10am India time, the Samuhik (mass) Surya Namaskar Yagya begun at various places. In about half an hour, the participants completed 13 Surya Namsakars as per instructions.

Each and every town & city, many taluka (tehsil) places & even small villages across India witnessed the mass Surya Namaskar performed on the occasion of 'World Surya Namskar day' today. Vivekananda Sardha Shati Samaroha Samiti (Vivekananda 150 birth anniversary celebration committee), which organized the event had organized a bitter campaign including a month long training to the participants.

The news continues to come in throughout the nation. We have compiled some news stories for our readers :

Surya_Namskar_Delhi_Ramlila_1_Feb_2013_18New Delhi : More than two lakh pupils participated in the 'Surya Namaskar Yagya' here. A major event was organised at the Ramlila ground where more than 50 thousand youths participated. Various schools & collages along with many citizen groups & NGOs also organized 'Surya Namaskar Yagya' event at various places throughout the National capital.

Mumbai : In Mumbai, more than one lakh people, mostly young students from schools & collages participated in Saurya Namaskar yagya. At Shivaji Park, the biggest play ground situated at the center of the city, more than Five thousand students from each school & collage including Municipal & Govt ones, around the locality, participated. RSS Sah-Sar Karyavah (Joint Gen Secretary) Kannan was the chief guest. Many dignitaries from administration, industrialists, educationists & Vivekananda Kendra workers also participated in this programme..

Many Mumbai schools & collages observed the 'World Surya Namaskar Day' with organizing the mass Surya Namaskar events in their own premises or local grounds. Its learnt that the Govt of Maharashtra had instructed the school & collage fraternity to participate in this 'Samuhik Surya Namaskar Yagya' as a tribute to Swami Vivekananda on his 150th birth anniversary.

Thane : More than 12 thousand students from 38 schools in the historical lake city situated at the outskirts of Mumbai, participated in the Surya Namaskar performing total of one lakh 64 thousand 38 Surya Namaskars. Education department also participated in this massive event.

Nagpur : Mayor Anil Sole inaugurated the 'Surya Namaskar Yagya' programme at Yashvant Stadium where more than 50 thousand students along with the prominent dignitaries & common citizens participated.

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Jaipur : In the state of Rajasthan, more than 10 lakh students participated in the 'Surya Namaskar Yagya' event. Krida Bharati President, MP & former cricketer Chetan Chauhan, former IB director Ajit Doval & former chief secretary of Rajasthan Mitthalal Mehta participated in the programme held at Jaipur.

Udaypur : In Udaypur city, more than 10 thousand students participated in 'Surya Namaskar Yagya'. Former IG Shri Khadkavat participated along with many dignitaries in the 'Surya Namaskar Yagya'.

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Jodhpur : More than 51 thousand students participated along with dignitaries & prominent citizens participated in the 'Surya Namaskar Yagya'. Lt.Col. Mandhata Sing, RSS Akhil Bharatiya Sah Sampark Pramukh Ram Madhav were the chief Guests.

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Varanashi (Kashi) : VSK reported that more than 30 thousand students participated in the 'Surya Namaskar Yagya' throughout the Varanasi district. At Ramnagar's Maharaja Banaras Mahila Mahavidyalaya, the Queen Maharani Anamika Kunvar was present for the 'Surya Namaskar Yagya'. Former chief medical officer of the district, Dr. Narendra Gupta addressed the students on the occasion. He elaborated the importance of Surya Namaskars in with the modern life style.

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Chennai : More than 10 lakh students participated in the 'Surya Namaskar Yagya' across the Tamilnadu state. Many industrialists, social workers, educationists & other professionals participated along with the students.

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Bangalore : In Karnataka too, more than 10 lakh students participated with prominent citizens & dignitaries & religious leaders participated in the 'Surya Namaskar Yagya'. At Mysore Palace, the RSS Pranth Sangha Chalak M Venkataram inaugurated the Surya Namaskar campaign. RSS Karnataka Pranth Karyavah N Tippeswamy, RSS Karnataka Pranth Sampark Pramuk TS Venkatesh and several other prominent socio-religious leaders present on the occasion.

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Jammu : More than ten thousand students along with many dignitaries & prominent citizens participated in the 'Surya Namaskar Yagya'.

Patna : Thousands of students participated in the 'Surya Namaskar Yagya' throughout the Bihar state in the 'Surya Namaskar Yagya' despite the political opposition from the Muslim hardliners. The total participation may cross one lakh students, according to local news reporters.

Surya_namskar_Sabarmati_Karnavati : More than 10 lakhs students participated in the 'Surya Namaskar Yagya' in Gujrat state. A major event was organized at Sabarmati river front, in which 50 thousand plus people participated. People from all walks of life, leaders from industry, education, socio-political circles & religious figures were seen participating in this mega event throughout the state.

News from north eastern parts of India indicate that lakhs may have participated in the 'Surya Namaskar Yagya' celebrations in this part of the country. The details are still awaited.

Thursday, February 21, 2013

Jallianwala Bagh killings 'deeply shameful': British PM Cameron


 


Jallianwala Bagh killings 'deeply shameful': British PM Cameron

British Prime Minister David Cameron visited the site of a colonial-era massacre in India on Wednesday, describing the episode as "deeply shameful" while stopping short of a public apology.

On the last leg of a three-day trip aimed at forging deeper economic ties, Cameron took the bold decision to visit the city of Amritsar and tackle an enduring scar of British rule on the subcontinent, which ended in 1947.

Dressed in a dark suit and bowing his head, he laid a wreath at the memorial to the victims at Jallianwala Bagh, where British troops opened fire on thousands of unarmed protesters in 1919.

In a message in the visitors' book, he wrote: "This was a deeply shameful event in British history and one that Winston Churchill rightly declared at the time as 'monstrous'.

"We must never forget what happened here. And in remembering we must ensure that the United Kingdom stands up for the right of peaceful protest around the world."

The number of casualties at the Jallianwala Bagh garden is unclear, with colonial-era records showing about 400 deaths while Indian figures put the number killed at closer to 1,000.

Bhusan Behl, who heads a trust for the families of victims, has campaigned for decades on behalf of his grandfather who was killed at the entrance to the walled area.

He said he was hoping that Cameron would say sorry for the slaughter ordered by General Reginald Dyer, which was immortalised in Richard Attenborough's film Gandhi and features in Salman Rushdie's epic book Midnight's Children.

The 1919 slaughter, known in India as the Jallianwala Bagh massacre, was described by Mahatma Gandhi, the father of the Indian independence movement, as having shaken the foundations of the British Empire.

A group of soldiers opened fire on an unarmed crowd without warning in the northern Indian city after a period of unrest, killing hundreds in cold blood.

The large number of Punjab Police troops deployed at Jallianwala Bagh on the eve of British Prime Minister David Cameron's visit, in Amritsar. Munish Byala/HT Photo

Cameron's visit and expression of regret for what happened will stop short of an apology - but will make it clear he considers the episode a stain on Britain's history that should be acknowledged.

British Prime Minister David Cameron writes in the visitors' book at Golden Temple, Amritsar. Munish Byala/HT Photo

The gesture, coming on the third and final day of a visit to India aimed at drumming up trade and investment, is likely to be seen as an attempt to improve relations with Britain's former colonial possession and to court around 1.5 million British voters of Indian origin ahead of a 2015 election.

Before his visit, Cameron said there were ties of history between the two countries, "both the good and the bad".

"In Amritsar, I want to take the opportunity to pay my respects at Jallianwala Bagh," he said, referring to the site of the massacre.

Cameron is expected to visit Amritsar's Golden Temple, a place of pilgrimage for Sikhs, and to inscribe his thoughts about the killings in the visitor book.

When asked to comment on Britain's colonial past, he said: "I would argue it's a strength, not a weakness. Of course there are sensitive issues, sensitive events, but actually the fact that Britain and India have this history, have a shared culture and a shared language, I think, is a positive."

The British report into the Amritsar massacre at the time said 379 people had been killed and 1,200 wounded. But a separate inquiry commissioned by the Indian pro-independence movement said around 1,000 people had been killed.

Brigadier-General Reginald Dyer, the man who gave the order to fire, explained his decision by saying he felt it was necessary to "teach a moral lesson to the Punjab".

Some in Britain hailed him "as the man who saved India", but others condemned him. India became independent in 1947.

Many historians consider the massacre a turning point that undermined British rule of India.

It was, they say, one of the moments that caused Gandhi and the pro-independence Indian National Congress movement to lose trust in the British, inspiring them to embark on a path of civil disobedience.

British Prime Minister David Cameron's message to the martyrs of 1919 Jallianwala Bagh Massacre at Jallianwala Bagh memorial, Amritsar. Munish Byala/HT Photo

"Monstrous event"

Other British politicians and dignitaries - though no serving prime minister - have expressed regret about the incident before.

In 1920, Winston Churchill, then the secretary of state for war, called the Amritsar massacre "a monstrous event", saying it was "not the British way of doing business".

Punjab Police personnel deployed for the security of British Prime Minister David Cameron outside Jallianwala Bagh, Amritsar. PTI

On a visit to Amritsar in 1997, Queen Elizabeth called it a distressing episode, but said history could not be rewritten. However, her husband, Prince Philip, courted controversy during the visit when he questioned the higher Indian death toll.

Before he became prime minister, Tony Blair also visited, saying the memorial at Amritsar was a reminder of "the worst aspects of colonialism".

In recent years, British leaders have begun to apologise for some of the excesses of Empire.

Visiting Pakistan in 2011, Cameron angered traditionalists at home saying Britain had caused many of the world's problems, including the Kashmir conflict between India and Pakistan.

When in office, Blair apologised for the 19th century Irish potato famine and for Britain's involvement in the slave trade, while Gordon Brown, his successor, apologised for the fact that British children were shipped to Australia and other Commonwealth countries between the 1920s and 1960s.

Britain ruled or held sway in India via the British East India company from the 17th century until 1947.

India's colonial history remains a sensitive subject for many Indians, particularly nationalists who want Britain to recognise and apologise for its excesses.

Others believe bygones should be bygones.

"What happened in the past happened in the past," Aamir Khan, Bollywood film star, told reporters after a meeting with Cameron on Tuesday.

"I don't think we can hold the present generation of Britishers responsible for what happened ages ago. It is not fair. I don't think that they owe us an apology for what happened a century ago."

Cameron has said the two countries enjoy a "special relationship", a term usually reserved for Britain's relations with the United States, but it is a relationship undergoing profound change.

For now, Britain's economy is the sixth largest in the world and India's the 10th. But India is forecast to overtake its old colonial master in the decades ahead and London wants to share in that economic success.

(With AFP and Reuters inputs)

http://www.hindustantimes.com/india-news/newdelhi/India-LP-India-Lid.aspx

 


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VANDE MATARAM
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12, M V NAIDU STREET,
CHETPUT,
CHENNAI 600 031
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Questions for Hafiz Saeed- by Mr MJ Akbar


 

A masterpiece of an article by MJ Akbar must be read by  THOSE Muslims who take to the streets to protest in this country , intimidating the majority and other minority communities who have committed themselves to the creation of a secular state.  Let these  Muslims not forget that a nation created for them is already called a failed state.

Questions for Hafiz Saeed


MJ Akbar 
03 February 2013

A question for the internationally recognize mastermind of the 2008 Mumbai attack, Hafiz Saeed, resident of Lahore, who has just offered sanctuary in Pakistan to our superstar Shah Rukh Khan. Pakistan was carved out in 1947 to ensure security for this subcontinent's Muslims in a separate homeland. Why, six decades later, has Pakistan become the most insecure place for Muslims in the world? Why are more Muslims being killed each day, on an average, in Pakistan than in the rest of the Muslim world put together?


This continual mass murder is not being done by Hindus and Sikhs, who were once proud residents of Punjab and Sindh but are now merely a near-invisible trace. Some Pakistan leaders even express pride in the fact that non-Muslims , who constituted around 20 per cent of the population in 1947, have been reduced to less than 2 per cent. In contrast, the percentage of Muslims in secular India has increased since independence. Hindus and Sikhs are not killing Muslims in Pakistan; Muslims are murdering Muslims, and on a scale unprecedented in the history of Punjab, the North West Frontier and Sindh. Why?

There have been riots in India, some of them horrendous. But the graph is one of ebb from the peak of 1947. When a riot does occur, as in Maharashtra recently, civil society and media stand up to demand accountability, and the ground pressure of a secular democracy forces even reluctant governments to cooperate in punishment of the guilty. When Shias, or other sectarians, are mass-murdered in Pakistan on a regular basis, the killers celebrate a "duty" well done.

History's paradox is evident: Muslims today are safer in India than in Pakistan. The "muhajirs" who left the cities of Uttar Pradesh and Bihar in 1947 would have been far safer in Lucknow, Patna and dozens of cities in their original land than they are now in the tense streets and by-lanes of Karachi.


Could Shah Rukh Khan have become an international heart throb if his parents had joined the emigration in 1947? Since he is talented he would have gained some recognition on the fringes of elite society, but he could not have become a central presence of a popular culture that has seeped and spread to every tehsil and village. Nor is Shah Rukh the only Muslim superstar in Mumbai's film world; Salman Khan is bigger than him. Shah Rukh and Salman and Amir Khan do not hide their identity through an alias; their birth name is their public persona.

The television set in my office serves two main purposes: it shows cricket and offers access to an FM radio station which plays old film songs. A song by Muhammad Rafi was on the air while the previous paragraph was being written: Man re tu kahe na dheer dhare. It is a beautiful classic, written by Sahir Ludhianvi. Rafi, as his name confirms, was a Muslim. He was born in 1924 in western Punjab and came to Mumbai as a very young man in search of dreams. Those dreams had not come true by 1947. Rafi had the option of returning to Lahore. He chose to remain in Mumbai, and brought his family in what might be called the reverse direction. It was a wise choice. Mumbai made Rafi's voice immortal. Rafi, like India, was the distillation of many inspirations.

Hafiz Saeed and his ilk possess cramped, virulent minds which condemn the ragas upon which our subcontinent's music, both classic and popular, is based, as inimical. They want to destroy a shared Hindu-Muslim cultural heritage in which Muslim maestros took classical music to splendid heights under the patronage of padishahs, rajahs and nawabs . Instead of art, they possess vitriol, even as the violence they spawn turns Pakistan into a laboratory of chaos. They call themselves guardians of their nation, but they are in fact regressive theocrats who are shredding the Pakistan that Jinnah imagined.

 

There is an answer to the opening question. Extremists who reduce faith to a fortress do not understand a simple truth: faith cannot be partitioned. Islam was a revelation for mankind; it cannot be usurped by a minor tract of geography. Nations are created by and for men, within boundaries of language or culture or tribe. Religion comes from God; it is not a political tool for human ambition. Those who equate religion with nation distort the first and destroy the second. Pakistan has become a battlefield for dysfunctional forces because theocrats will not permit it to become a rational state.


Logic suggests a reciprocal offer: Pakistani Muslims would be safer in India. But that offer cannot extend to Hafiz Saeed. His mission is to be India's adversary. What he does not understand is that he is really Pakistan's enemy.

 


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Friday, February 15, 2013

Fwd: खाड़ी देशों में बंगलादेशियों पर प्रतिबंध



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बंगलादेशियों पर प्रतिबंध

तारीख: 10/6/2012

खाड़ी देशों में

बंगलादेशियों पर प्रतिबंध

 

मुजफ्फर हुसैन

पिछले दिनों निर्गुट देशों एवं इस्लामी देशों के सम्मेलन समाप्त होते ही खाड़ी के देशों ने अपने यहां काम कर रहे बंगलादेशियों को देश छोड़ जाने का हुक्म क्यों दे दिया? शायद उन्हें पता लग गया कि अमरीका की नाक दबाने के लिए अब अरब अमीरात के देशों का उपयोग किया जाएगा। सम्मेलन में शामिल देश मुस्लिम आतंकवादियों की पीठ थपथपाएंगे। इससे उन्हें धन भी मिलेगा और एशिया के एक बड़े भूभाग से अमरीका को पीछे हटना पड़ेगा। इसलिए अरब अमीरात के देश सावधान हो गए हैं। उनके यहां काम कर रहे बंगलादेशी कट्टरवादियों का समर्थन कर सकते हैं इसलिए अपनी सुरक्षा की खातिर अरब अमीरात के देशों ने अपने यहां काम कर रहे बंगलादेशियों को निकाल देने एवं भविष्य में उनके आने पर प्रतिबंध लगा देने की पहल शुरू कर दी है। उक्त दोनों सम्मेलनों में सऊदी राजा और ईरान के राष्ट्रपति ने एक स्वर में एक बांग दी कि सारी दुनिया के मुस्लिम आपस में भाई का रिश्ता रखते हैं जिसका नाम कौम दिया गया है। लेकिन दुनिया के झगड़ों और विवादों पर नजर डालें तो संभवत: मुस्लिम राष्ट्रों में जितने विवाद और झगड़े हैं वे किसी अन्य समाज और मत में नहीं। मुसलमानों ने ही मुसलमानों पर अत्याचार किया है। इस मामले में इतिहास की अनेक घटनाएं साक्षी हैं। शिया और सुन्नी के रूप में इराक और ईरान में ही युद्ध नहीं होता है, बल्कि भाषा, रक्त, राष्ट्रीयता और सम्प्रदाय के झगड़ों से मुस्लिम समाज भरा पड़ा है। हर देश का मुसलमान तेल उत्पादक अरब राष्ट्रों के मुसलमान जैसा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और मजबूत नहीं है। अरब देशों में अन्य मुसलमानों के साथ क्या होता है इसका भी एक लम्बा और दुखद इतिहास है। भारत में जब बंगलादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध आवाज बुलंद की जाती है तो अनेक मुस्लिम नेताओं के मुंह से यह शब्द सुनाई पड़ते हैं कि बंगलादेशी मुस्लिम हैं इसलिए भारत में उनके साथ अन्याय होता है। लेकिन क्या इन बंगलादेशियों से अन्य देशों के मुसलमान खुश हैं? यदि यह जानना है तो खाड़ी के देशों ने मिलकर बंगलादेशियों को जिस तरह से निकालने का निर्णय किया है उसके बारे में आप क्या विचार करेंगे?

निकालो बंगलादेशियों को

अलखलीज से लेकर कुवैत टाइम्स और सऊदी गजट से लेकर अलजजीरा नेटवर्क ने इन समाचारों को बड़ी खबर के रूप में अपने मुखपृष्ठों पर चमकाया है। अखबार लिख रहे हैं कि पिछले दो सप्ताह से अरब, अमीरात, यूएई ने बंगलादेशी मजदूरों को वीजा जारी करना बंद कर दिया है। वहां के अरब नागरिकों से कहा जा रहा है कि जो पुराने बंगलादेशी मजदूर और घर के नौकर चाकर के रूप में काम कर रहे हैं उन्हें जल्द देश से बाहर निकाल दिया जाए। यदि कुछ बंगलादेशी स्थायी नौकरी में हैं तब भी उन्हें यहां से चले जाने के लिए कह दिया जाए। वास्तविकता यह है कि अरब अमीरात में काम करने वाले मजदूरों में 50 प्रतिशत बंगलादेशी हैं। बंगलादेश के श्रम मंत्री खंडीगार मुशर्रफ ने अपना बयान जारी करते हुए कहा है कि बंगलादेशी मजदूर बड़ी तादाद में ढाका लौट रहे हैं। जिन मजदूरों के अनुबंध हैं उन्हें घर चले जाने की हिदायत दे दी  गई है। अरब अमीरात ने अपनी नीति स्पष्ट करते हुए कहा कि 31 दिसंबर, 2012 तक अमीरात के देशों में कोई बंगलादेशी नहीं रहेगा। सरकार इस बात पर भी तैयार है कि किसी कारणवश उन्हें हर्जाना देना पड़े तो इसके लिए भी वह तैयार है। मजदूरों के निष्कासन से बंगलादेश सरकार को 12 अरब 85 करोड़ डालर का घाटा उठाना पड़ेगा। बंगलादेश की अर्थव्यवस्था के लिए यह बड़ी चुनौती होगी। उक्त धनराशि देश की घरेलू पैदावार का 12 प्रतिशत बताई जाती है। दुनिया में सबसे सस्ता मजदूर बंगलादेशी है। लेकिन अब विश्व स्तर पर बंगलादेशियों से अनेक सरकारें सतर्क हो गई हैं। अरब अमीरात सहित अन्य देशों में बंगलादेशी पुरुष और महिलाएं ही केवल काम पर नहीं जाती हैं, बल्कि उनके छोटे-छोटे बच्चों को भी बहला-फुसला कर विदेशों में भेज दिया जाता है।

पिछले दिनों बच्चों को काम के बहाने जिस तरह से उनका शोषण किया जाता है उस संबंध में राष्ट्र संघ ने एक आयोग बनाकर इसकी छानबीन की थी। लेकिन बच्चों को भिजवाने पर प्रतिबंध लगाने के मामले में अनेक देश सहमत नहीं थे। पाकिस्तान सहित कुछ मुस्लिम देशों ने इसका विरोध किया। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण अरब देशों में इन बच्चों को ऊंट की दौड़ में प्रयोग किया जाता है। अरबी अपने मनोरंजन के लिए ऊंट दौड़ आयोजित करते हैं। ऊंट की नंगी पीठ पर बच्चों को बांध दिया जाता है। दौड़ के समय बच्चे घबराकर जोर जोर से रोने लगते हैं। रेस के रसियाओं का कहना है कि बच्चों के रोने की आवाज से ऊंट तेजी से भागता है और प्रतिस्पर्धा में आगे निकल जाने के लिए सब कुछ कर गुजरता है। नंगी पीठ पर बच्चे लहूलुहान हो जाते हैं। उस रेस में आधे से अधिक बच्चे दम तोड़ देते हैं। राष्ट्र संघ ने कई बार अपनी रपट में इस पर आपत्ति प्रकट की है लेकिन बंगलादेश की सरकार केवल दीनार और रियाल के चक्कर में इस पर कोई ध्यान नहीं देती है

आतंकवादियों से साठगांठ

लेकिन इस समय मजदूरों पर प्रतिबंध लगाने का कारण दूसरा है। आतंकवादियों को बड़ी तादाद में मानव बल की आवश्यकता होती है। वे बंगलादेशियों को बहला-फुसला कर अपने लश्कर और अन्य संगठनों में भर्ती कर लेते हैं। आतंकवादी पैसा पाने के लिए खाड़ी के देशों को दूध देने वाली गाय की उपमा देते हैं। उनका मानना है कि एक तो इस सुनसान प्रदेश में कोई पूछने वाला नहीं है। दूसरी बात यहां काम कराने वालों से उन्हें अच्छा पैसा मिल जाता है। अरब अमीरात के देशों को पता लगा है कि आतंकवादी यहां भी अपने पांव पसार रहे हैं। इस काम में वे अधिकतम उपयोग बंगलादेशियों का कर रहे हैं। इसलिए खाड़ी के देशों को अमरीका सहित अनेक देशों ने सावधान किया है। पिछले दिनों जब राष्ट्र संघ में बच्चे और युद्ध इस विषय पर चर्चा हुई तो अनेक देश कन्नी काट गए। उक्त प्रस्ताव हान केमून के विशेष प्रतिनिधि लेली जेरोगी के प्रयासों से पेश किया गया था। पाठकों को बता दें कि हाल ही में लेली ने राधिका कुमार स्वामी का स्थान लिया है। बच्चों को आतंकवादी बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं। उन्हें मानव बम के रूप में उपयोग में लाते हैं। इस रपट में राष्ट्रसंघ ने यह स्वीकार किया है कि बच्चों के उपयोग से ही आतंकवादियों की बांहें फड़कने लगती हैं। बंगलादेशी और अन्य गरीब देशों के बच्चों का यह शोषण मानवता पर कलंक है। लेकिन स्वयं आतंकवादी और उनके समर्थक देश इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं।

असली समस्या

सबसे अधिक अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले लोग भी बंगलादेशी हैं। वे येन-केन प्रकारेण इन देशों में पहुंच जाते हैं। तेज रफ्तार नावें तो इसका स्थायी साधन हैं ही, अन्य माल ढोने वाले जहाजों में भी बोरियों में बंदकर बंगलादेशियों को चढ़ा दिया जाता है। वहां उनका एजेंट होता है। एक बार भीतर पहुंच गए कि फिर उन्हें येन केन प्रकारेण बाहर निकाल लिया जाता है। विश्व में सबसे अधिक अवैध नागरिक किसी देश के हैं तो वे बंगलादेश के हैं। एक बंगलादेशी किसी अन्य देश में पहुंचकर अपने अन्य परिचितों को वहां आमंत्रित कर लेता है। बंगलादेशियों का म्यांमार से झगड़ा होने का यह भी एक कारण है। नेपाल और भारतीय सीमा तो उनके लिए स्वर्ग समान है। वहां से हर दिन बंगलादेशियों के टोले विदेश पहुंच जाते हैं। इंदिरा गांधी और मुजीबुर्रहमान के बीच बंगलादेशियों की नागरिकता संबंधी जो फैसला हुआ था उसे आधार बनाकर बड़ी संख्या में बंगलादेशियों की भारत में घुसपैठ होती रहती है। सच बात तो यह है कि बंगलादेश की लगभग 1/3 जनसंख्या भारत में प्रवेश कर चुकी है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि इस संख्या को पुन: बंगलादेश भेजना संभव नहीं है। यदि भारत सरकार इस मामले में इतनी अक्षम है तो फिर बंगलादेश से यह क्यों मांग नहीं करती है कि उसके नागरिकों को बसाने के लिए बंगलादेश सरकार को अपनी धरती का 1/3 भाग भी भारत को दे देना चाहिए। लेकिन सरकार के पास न तो इतना साहस है और न ही आत्मविश्वास कि वह इन घुसपैठियों को वापस रवाना करवा सके। असम की असली समस्या ही इन बंगलादेशी घुसपैठियों की है। इससे भारत की भूमि पर जो असंतुलन पैदा हो गया है उससे भविष्य में देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का जटिल सवाल उठने वाला है। भारत सरकार ने अब तक कभी संसद को यह जानकारी नहीं दी कि बंगलादेश से आए कितने अवैध नागरिकों को देश से बाहर निकालकर बंगलादेश भिजवा दिया गया है। बंगलादेशियों की घुसपैठ के मामले में सरकार के पास सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सेकुलर राजनीतिक दल उनका वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझते हैं। इसलिए भारत में बंगलादेशियों की घुसपैठ पूर्णतया राजनीति से प्रेरित है।

चीन और बंगलादेशी

खाड़ी की सरकारें तो इस मामले में सतर्क हो गई हैं लेकिन जिन देशों में बंगलादेशी घुसपैठ कर रहे हैं वहां लगातार समस्याएं उठती जा रही हैं। सऊदी अरब ने एक बार मुहिम चलाकर इन्हें बाहर निकाला था। दस साल पहले 8 हजार बंगलादेशियों को बाहर निकाल दिया गया था। कुछ देशों को यह भी खतरा है कि उनके शत्रु देश की सेना में यदि बंगलादेशी घुस जाते हैं तो उनकी ताकत बढ़ सकती है। चीन में तो बंगलादेशी को देखते ही जेल में भिजवा दिया जाता है। वह वहां से जीवित निकलता है या नहीं, यह खोज का विषय है। हांगकांग टाइम्स ने सिक्यांग में गड़बड़ करने वाले 180 बंगलादेशियों की सूची प्रकाशित की थी। बंगलादेशी कितनी बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं यह अमीरात के देशों के उठाए कदम से भली प्रकार समझा जा सकता है। अरब अमीरात के इस निर्णय से यह सिद्ध हो जाता है कि कोई भी देश हो उसे मजहब से अधिक अपनी धरती का ही विचार करना पड़ता है। पर भारत में तो बंगलादेशियों को बसाया जा रहा है।